अन्ना गैंग की "कोर कमेटी" की बैठक टलने की खबर समाचार पत्रों में पढ़ी तो सोचने लगा कि, कहाँ तो 74 वर्ष की उम्र में डायलिसिस के सहारे चलती साँसों के साथ 19 महीने तक "काल-कोठरी" में जानलेवा कठोर संघर्ष करने वाले स्व.जयप्रकाश नारायण जी का ऐतिहासिक जनसंघर्ष-जनान्दोलन और कहाँ सामान्य बुखार के कारण बैठक तक टालने वाले तथाकथित जनयोद्धा / देश के जनान्दोलनों के स्वघोषित इकलौते ठेकेदार...!!!
क्या उन ऐतिहासिक और वास्तविक जनान्दोलनों और उन महान जननायकों से इनकी तुलना करना भी शर्मनाक नहीं होगा...???
इन दिनों "अन्ना टीम" की विषाक्त एवं विकृत "वास्तविकता" से परिचित कराती मेरी तीखी टिप्पणियों पर अन्ना भक्तों की "सूरदासी" भीड़ एक बार फिर बुरी तरह भड़की हुई है.
शहर के किसी पार्क या चौराहे पर "मोमबत्ती" जलाकर भ्रष्टाचार के खिलाफ तथाकथित ज़ंग...!!! के पाखंड को ही अन्ना भक्तों की "सूरदासी" भीड़ भ्रष्टाचार के खिलाफ भीषण और ऐतिहासिक निर्णायक संघर्ष मान रही है.
शायद अन्ना भक्तों की "सूरदासी" भीड़ को मालूम नहीं है इसलिए बता दूं कि, 1975 में गुर्दे के गंभीर रोग से ग्रसित, डायलिसिस के सहारे चल रही अपनी साँसों वाले एक 74 साल के वृद्ध "लोकनायक" जयप्रकाश नारायण ने देश की तत्कालीन "सर्वशक्तिमान" इंदिरा सरकार के भयंकर भ्रष्टाचार के खिलाफ मोर्चा खोला था. सरकार के खिलाफ सड़क पर सीधे संघर्ष में अपने सर और सीने पर पुलिस की लाठियां खाने के बाद जयप्रकाश नारायण 26 जून 1975 को गिरफ्तार कर लिए गए थे और लगातार 19 महीनों तक "तन्हाई" का कठोर कारावास भोगा था. उनके साथ इस देश के दसियों हज़ार नौजवान आन्दोलनकारियों ने भी देश भर की जेलों में अपने कठोर कारावास में अपने कठिन संघर्ष की आग को जलाये रखा था. तब जाकर देश को तत्कालीन इंदिरा सरकार के भ्रष्ट कुशासन से मुक्ति मिल सकी थी.
ज़रा गौर करिए कि, डायलिसिस के सहारे सांस ले रहा एक 74 वर्षीय वृद्ध 19 महीनों तक "तन्हाई" का कठोर कारावास भोगने के बावजूद झुका नहीं और अपने लक्ष्य, अपने उद्देश्य की प्राप्ति किये बिना अपने संघर्ष की राह से डिगा नहीं, जबकि वायरल बुखार और ज़ुकाम के चलते मैदान छोड़कर भाग खड़े हुए अन्ना हजारे और उनकी हट्टी-कट्टी मुष्टंदी "अन्ना टीम" ने भी समय से पहले ही अपना बोरिया-बिस्तर समेट लिया. जबकि लक्ष्य उद्देश्य की पूर्ती प्राप्ति की बात तो छोड़िये, उनकी हत्या सरकार ने सरेशाम इस गैंग की जानकारी में खूब ढोल नगाड़े बजाकर करी.
अतः इतना जान समझ लीजिये कि 5 लाख रुपये रोजाना किराये वाले सर्वसुविधा युक्त 5 स्टार पंडाल-पार्क में अनशन की बांसुरीं बजाकर, मोमबत्ती जलाकर कोई आन्दोलन किसी निर्णायक मुकाम पर कभी नहीं पहुँचता. यही अन्ना के आन्दोलन के साथ भी हुआ.
क्या उन ऐतिहासिक और वास्तविक जनान्दोलनों और उन महान जननायकों से इनकी तुलना करना भी शर्मनाक नहीं होगा...???
इन दिनों "अन्ना टीम" की विषाक्त एवं विकृत "वास्तविकता" से परिचित कराती मेरी तीखी टिप्पणियों पर अन्ना भक्तों की "सूरदासी" भीड़ एक बार फिर बुरी तरह भड़की हुई है.
शहर के किसी पार्क या चौराहे पर "मोमबत्ती" जलाकर भ्रष्टाचार के खिलाफ तथाकथित ज़ंग...!!! के पाखंड को ही अन्ना भक्तों की "सूरदासी" भीड़ भ्रष्टाचार के खिलाफ भीषण और ऐतिहासिक निर्णायक संघर्ष मान रही है.
शायद अन्ना भक्तों की "सूरदासी" भीड़ को मालूम नहीं है इसलिए बता दूं कि, 1975 में गुर्दे के गंभीर रोग से ग्रसित, डायलिसिस के सहारे चल रही अपनी साँसों वाले एक 74 साल के वृद्ध "लोकनायक" जयप्रकाश नारायण ने देश की तत्कालीन "सर्वशक्तिमान" इंदिरा सरकार के भयंकर भ्रष्टाचार के खिलाफ मोर्चा खोला था. सरकार के खिलाफ सड़क पर सीधे संघर्ष में अपने सर और सीने पर पुलिस की लाठियां खाने के बाद जयप्रकाश नारायण 26 जून 1975 को गिरफ्तार कर लिए गए थे और लगातार 19 महीनों तक "तन्हाई" का कठोर कारावास भोगा था. उनके साथ इस देश के दसियों हज़ार नौजवान आन्दोलनकारियों ने भी देश भर की जेलों में अपने कठोर कारावास में अपने कठिन संघर्ष की आग को जलाये रखा था. तब जाकर देश को तत्कालीन इंदिरा सरकार के भ्रष्ट कुशासन से मुक्ति मिल सकी थी.
ज़रा गौर करिए कि, डायलिसिस के सहारे सांस ले रहा एक 74 वर्षीय वृद्ध 19 महीनों तक "तन्हाई" का कठोर कारावास भोगने के बावजूद झुका नहीं और अपने लक्ष्य, अपने उद्देश्य की प्राप्ति किये बिना अपने संघर्ष की राह से डिगा नहीं, जबकि वायरल बुखार और ज़ुकाम के चलते मैदान छोड़कर भाग खड़े हुए अन्ना हजारे और उनकी हट्टी-कट्टी मुष्टंदी "अन्ना टीम" ने भी समय से पहले ही अपना बोरिया-बिस्तर समेट लिया. जबकि लक्ष्य उद्देश्य की पूर्ती प्राप्ति की बात तो छोड़िये, उनकी हत्या सरकार ने सरेशाम इस गैंग की जानकारी में खूब ढोल नगाड़े बजाकर करी.
अतः इतना जान समझ लीजिये कि 5 लाख रुपये रोजाना किराये वाले सर्वसुविधा युक्त 5 स्टार पंडाल-पार्क में अनशन की बांसुरीं बजाकर, मोमबत्ती जलाकर कोई आन्दोलन किसी निर्णायक मुकाम पर कभी नहीं पहुँचता. यही अन्ना के आन्दोलन के साथ भी हुआ.