Saturday 31 December 2011

"अन्ना गैंग" जनसंघर्ष के मायने भी नहीं जानता...


अन्ना गैंग की "कोर कमेटी" की बैठक टलने की खबर समाचार पत्रों में पढ़ी तो सोचने लगा कि, कहाँ तो 74 वर्ष की उम्र में डायलिसिस के सहारे चलती साँसों के साथ 19 महीने तक "काल-कोठरी" में जानलेवा कठोर संघर्ष करने वाले स्व.जयप्रकाश नारायण जी का ऐतिहासिक जनसंघर्ष-जनान्दोलन और कहाँ सामान्य बुखार के कारण बैठक तक टालने वाले तथाकथित जनयोद्धा / देश के जनान्दोलनों के स्वघोषित इकलौते ठेकेदार...!!! 
क्या उन ऐतिहासिक और वास्तविक जनान्दोलनों और उन महान जननायकों से इनकी तुलना करना भी शर्मनाक नहीं होगा...???
इन दिनों "अन्ना टीम" की विषाक्त एवं विकृत "वास्तविकता" से परिचित कराती मेरी तीखी टिप्पणियों पर अन्ना भक्तों की "सूरदासी" भीड़ एक बार फिर बुरी तरह भड़की हुई है.
शहर के किसी पार्क या चौराहे पर "मोमबत्ती" जलाकर भ्रष्टाचार के खिलाफ तथाकथित ज़ंग...!!! के पाखंड को ही अन्ना भक्तों की "सूरदासी" भीड़ भ्रष्टाचार के खिलाफ भीषण और ऐतिहासिक निर्णायक संघर्ष मान रही है.
शायद अन्ना भक्तों की "सूरदासी" भीड़ को मालूम नहीं है इसलिए बता दूं कि, 1975 में गुर्दे के गंभीर रोग से ग्रसित, डायलिसिस के सहारे चल रही अपनी साँसों वाले एक 74 साल के वृद्ध "लोकनायक" जयप्रकाश नारायण ने देश की तत्कालीन "सर्वशक्तिमान" इंदिरा सरकार के भयंकर भ्रष्टाचार के खिलाफ मोर्चा खोला था. सरकार के खिलाफ सड़क पर सीधे संघर्ष में अपने सर और सीने पर पुलिस की लाठियां खाने के बाद जयप्रकाश नारायण 26 जून 1975 को गिरफ्तार कर लिए गए थे और लगातार 19 महीनों तक "तन्हाई" का कठोर कारावास भोगा था. उनके साथ इस देश के दसियों हज़ार नौजवान आन्दोलनकारियों ने भी देश भर की जेलों में अपने कठोर कारावास में अपने कठिन संघर्ष की आग को जलाये रखा था. तब जाकर देश को तत्कालीन इंदिरा सरकार के भ्रष्ट कुशासन से मुक्ति मिल सकी थी.
ज़रा गौर करिए कि, डायलिसिस के सहारे सांस ले रहा एक 74 वर्षीय वृद्ध 19 महीनों तक "तन्हाई" का कठोर कारावास भोगने के बावजूद झुका नहीं और अपने लक्ष्य, अपने उद्देश्य की प्राप्ति किये बिना अपने संघर्ष की राह से डिगा नहीं, जबकि वायरल बुखार और ज़ुकाम के चलते मैदान छोड़कर भाग खड़े हुए अन्ना हजारे और उनकी हट्टी-कट्टी मुष्टंदी "अन्ना टीम" ने भी समय से पहले ही अपना बोरिया-बिस्तर समेट लिया. जबकि लक्ष्य उद्देश्य की पूर्ती प्राप्ति की बात तो छोड़िये, उनकी हत्या सरकार ने सरेशाम इस गैंग की जानकारी में खूब ढोल नगाड़े बजाकर करी.
अतः इतना जान समझ लीजिये कि 5 लाख रुपये रोजाना किराये वाले सर्वसुविधा युक्त 5 स्टार पंडाल-पार्क में अनशन की बांसुरीं बजाकर, मोमबत्ती जलाकर कोई आन्दोलन किसी निर्णायक मुकाम पर कभी नहीं पहुँचता. यही अन्ना के आन्दोलन के साथ भी हुआ.

आप सभी को नव वर्ष 2012 की मंगल कामनाएं

नव वर्ष
हर्ष नव
जीवन उत्कर्ष नव
नव उमंग
नव तरंग
जीवन का नव प्रसंग
नवल चाह
नवल राह
जीवन का नव प्रवाह
गीत नवल
प्रीति नवल
जीवन की रीति नवल
जीवन की नीति नवल
जीवन की जीत नवल
हरिवंश राय बच्चन जी की इन पंक्तियों के साथ आप सभी को नव वर्ष 2012 की मंगल कामनाएं. इश्वर से प्रार्थना है कि परमपिता परमात्मा हमारे देश को उत्तरोत्तर विकास,प्रगति के मार्ग पर ले जाए.

Friday 30 December 2011

हास्यास्पद हसीन सपना पूरा करने के “केजरीवाली” हथकंडे


अन्ना टीम, खासकर उसका सबसे शातिर खिलाडी अरविन्द केजरीवाल पिछले कुछ महीनों से टी.वी.कैमरों के समक्ष जब-तब अपने तथाकथित जनलोकपाली रिफ्रेंडम की धौंस देता रहता है. हर बात पर सर्वे करा लेने की चुनौतियाँ धमकियों की तरह देता रहता है. लेकिन फेसबुक के मित्रों ने उसको लेकर एक ऐसा सर्वे कर डाला जो अन्ना टीम के इस सबसे शातिर और मंझे खिलाडी के प्रति देश की सोच का खुलासा करता है..
दरअसल इस अरविन्द केजरीवाल ने अपने कुछ चम्मच-कटोरियों के माध्यम से स्वयम को इस देश के प्रधानमंत्री के रूप में प्रस्तुत करवाया था क्योंकि अगस्त महीने में दिल्ली के रामलीला मैदान में अन्ना टीम द्वारा लगाये-सजाये गए जनलोकपाली मजमे की तिकड़मी सफलता के बाद बुरी तरह बौराए अरविन्द केजरीवाल ने संभवतः इस देश के सर्वोच्च लोकतांत्रिक पद पर कब्ज़ा करने का दिवास्वप्न देखना पालना प्रारम्भ कर दिया था. अपने इस दिवास्वप्न के सम्बन्ध में देश की राय/थाह लेने के लिए अपने कुछ चमचों के द्वारा इसने फेसबुक पर ”kejriwal for PM ” https://www.facebook.com/ArvindK.PM नाम से एक पेज बनवा दिया था.
इस टीम की करतूतों से अत्यंत कुपित किसी व्यक्ति ने इसके जवाब में फेसबुक पर ही एक पेज Kejriwal For Peon Post https://www.facebook.com/groups/281688305200131/  बना डाला था, और गज़ब देखिये कि P.M. के पद के लिए टीम अन्ना के इस शातिर खिलाड़ी अरविन्द केजरीवाल को 1308 लोगों ने उपयुक्त माना तो इससे लगभग 110% अधिक लोगों ने अर्थात 2708 लोगों ने अन्ना टीम के इस शातिर खिलाडी को PEON के पद के ही उपयुक्त माना. अतः अन्ना टीम के इस शातिर खिलाडी की छवि के विषय में देश क्या सोचता है इसका लघु उदाहरण है उपरोक्त दोनों सर्वे…!!!!!!!!!!!!
देश को जनलोकपाल बिल की लोकलुभावनी किन्तु काल्पनिक लोरी सुनाने वाले गायक के रूप में अपनी लोकप्रियता को प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनने की सीढ़ी बनाने की इसकी कोशिश को देश ने करारा जवाब दिया है.
दरअसल सिर्फ यह पेज ही नहीं, बल्कि खुद को पूरी तरह अराजनीतिक बताने-कहने वाले “अन्ना टीम के ” के इस सबसे शातिर सियासी खिलाड़ी ने शेखचिल्लियों सरीखी अपनी इस मानसिक उड़ान की सफलता के लिए हर वो धूर्त हथकंडा जमकर आजमाया जो इस देश की दूषित हो चुकी राजनीति के कीचड़ में डूबा हर शातिर नेता आजमाता है.
टीम अन्ना का यह शातिर खिलाड़ी भ्रष्टाचार की खिलाफत का झंडा उठाये उठाये धर्मनिरपेक्षता बनाम साम्प्रदायिकता का सर्वाधिक निकृष्ट एवं निम्न स्तरीय सियासी पहाड़ा जोर-जोर से उसी तरह पढता दिखाई दिया, जिस तरह इस देश के कुछ महाभ्रष्ट राजनेता सत्ता की लूट में हिस्सेदारी के लिए खुद द्वारा किये जाने वाले अजब गज़ब समझौतों  को सैद्धांतिक सिद्ध करने के लिए धर्मनिरपेक्षता बनाम साम्प्रदायिकता का पहाड़ा देश को पढ़ाने-सुनाने लगते हैं. इसीलिए टीम अन्ना के इस सबसे शातिर सियासी खिलाड़ी ने मौलानाओं को खुश करने के लिए सबसे पहले अपने मजमे के मंच से भारतमाता के चित्र को हटाया फिर सिर्फ अन्ना हजारे को छोड़ कर बाक़ी खुद समेत बाकी सभी खिलाडियों  ने “वन्देमातरम्” तथा “भारतमाता की जय” सरीखे “मन्त्रघोषों” को अलविदा कहा. इसके बाद बाबा रामदेव और साध्वी ऋतंभरा से लेकर संघ परिवार और नरेन्द्र मोदी एवं हर उस संस्था और व्यक्ति तक को जमकर गरियाया कोसा जो तन मन और कर्म से हिंदुत्व की प्रतिनिधि हो. फिर ज़ामा मस्ज़िद के घोर कट्टरपंथी मौलाना के चरण चुम्बन के लिए किरन बेदी के साथ उसके घर जाकर रोया गया. इसके अतिरिक्त  ”अन्ना टीम” के इस शातिर खिलाड़ी ने कट्टर धर्मान्धता के एक से एक धुरंधर खिलाड़ियों सरीखे लखनऊ के नामी-गिरामी मौलानाओं से मिलने के लिए विशेष रूप से लखनऊ आकर उनकी मान-मनौवल जमकर की.  इसका जी जब इस से भी नहीं भरा तो मुंबई में अपना जनलोकपाली मजमा लगाने से पहले ये बाकायदा दुपल्ली टोपी लगाकर मुंबई के कट्टरपंथी मौलानाओं के घर खुद चलकर गया था और उनकी प्रार्थना-अर्चना के बाद उनसे पक्का वायदा भी कर आया था की अपने जनलोकपाली सर्कस का शो खत्म होते ही ये खुद और इसका गैंग देश में साम्प्रदायिकता के खिलाफ धुआंधार मोर्चा खोलेगा.
अर्थात संघ भाजपा और नरेन्द्र मोदी के खिलाफ. यह टीम अपनी पिछली करतूतों से यह स्पष्ट कर ही चकी है.
लेकिन हाय री किस्मत केजरीवाल की……….. मौलाना फिर भी नहीं रीझे…
और बाकी देश ….?
इसका जवाब मुंबई MMRDA और दिल्ली के रामलीला मैदान में 27 और 28 दिसम्बर को लोटते दिखे कुत्तों ने दे ही दिया है.

NGO गैंग की शर्मनाक सौदेबाज़ी, ठगा गया देश



गर अन्ना हजारे को बुखार आ गया था तो अन्ना टीम के स्टील बॉडी वाले केजरीवाल, तगड़ी-तंदरुस्त किरण बेदी और मजबूत डीलडौल वाले हट्टे-कट्टे मनीष और "मंचीय मसखरे" कुमार विश्वास क्यों नहीं बैठे अनशन पर...?
यदि स्वास्थ्य कारणों से अन्ना का जेल जाना संभव नहीं था तो ये लोग ही अनशन जारी रखते और जेल चले जाते...? लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ.
दरअसल बाबा रामदेव और उनकी कालाधन विरोधी मुहिम के सफाए के लिए प्रारम्भ में स्वयम सरकार द्वारा प्रायोजित "जनलोकपाली सर्कस" में जब अन्ना टीम की लाख विरोधी कोशिशों के बावजूद संघ भाजपा और अन्य विपक्षी दलों ने अपनी जबर्दस्त भागीदारी जबरदस्ती कर ली तब इस सर्कस के तरकश से जो तीर निकलना शुरू हुए वो तीर भ्रष्टाचार के कैंसर से साष्टांग संक्रमित सरकार और कांग्रेस के लिए जानलेवा सिद्ध होने लगे. इसके चलते कांग्रेसी किराये और संरंक्षण में लगाये-सजाये गए इस "जनलोकपाली सर्कस" के नटों और कलाबाजों(अन्ना टीम) को भी अपना रंग बदलना पडा. अतः अपनी बिल्ली को अपने ही खिलाफ म्याऊं करते देख कांग्रेसी सरकार के तेवर तीखे हुए. उसने जो लोकपाल बनाया उसमें इन बिल्लियों(NGO's) को तो शामिल किया ही साथ ही साथ इन बिल्लियों को अपने दान का दूध पिलाने वाले इनके कार्पोरेटी आकाओं को भी सरकारी लोकपाल के दायरे में शामिल कर लिया और उनके कार्पोरेटी टुकड़ों पर पलने वाले मीडिया पर भी लोकपाली शिकंजा कस दिया था, इस से पहले इन कार्पोरेटी भोंपुओं को जस्टिस काटजू के बहाने बहुत मोटा डंडा दिखा कर सरकार उनके होश पहले भी उड़ा ही चुकी थी. इसीलिए पिछली बार जब रामलीला मैदान में भी 20,000 से अधिक भीड़ कभी इकठ्ठा नहीं हुई थी तब उसे लाखों का जनसैलाब उमड़ा बताने वाले और देश के कुछ महानगरों में 100, 50 या फिर 500 तक की भीड़ को सड़कों पर देश उमड़ा बताने वाले मीडिया ने इस बार मुंबई के जनलोकपाली मजमें के दोनों दिन कैमरों की कलाबाजी से हजारों को लाखों में बदलने के बजाय वहाँ लोटते रहे कुत्तों और भिनभिनाती रही मक्खियों का सच ही दिखाया. जनलोकपाली सर्कस के बेलगाम नटों और मदारियों के कान उनके कार्पोरेटी आकाओं ने भी ऐन्ठें. इसीलिए पिछली बार रामलीला मैदान में कार्पोरेटी कृपा से किराये पर बुलाये बैठाये गए वे दर्जनों जोकर इस बार कहीं नहीं दिखे जो पिछली बार रामलीला मैदान में राम, रावण, हनुमान, महात्मा गांधी, शिवाजी, भगत सिंह आदि का भेष बना के तेरह दिनों तक घुमते रहे थे. सरकार द्वारा खुद पर कसे गए लोकपाली शिकंजे से कुपित कार्पोरेट जगत की कोपदृष्टि के ताप से मुरझाये आर्थिक स्त्रोतों की मार का कहर टीम अन्ना के उन इवेंट मैनेजरों पर भी पडा जिन्होंने पिछली बार रामलीला मैदान में ढोल ताशों वाले पढ़े-कढ़े जनलोकपाली भक्तों की भरमार कर दी थी. इसके अलावा सरकार ने भी लोकपाली शिंकजा कस के NGO के गोरखधंधे पर पूरी तरह आश्रित टीम अन्ना के विदेशी दाने-पानी पर प्रतिबन्ध का पुख्ता प्रबंध कर दिया था.अतः इस सर्कस के NGO धारी सारे नट और नटनी, मदारी तत्काल अपना चोला बदलने पर मजबूर हो गए और सरकार से जैसे तैसे समझौता किया. परिणामस्वरूप सरकार के जिस लोकपाल बिल के दायरे में पहले कार्पोरेट, मीडिया और विदेशी चंदा पाने वाले NGO's को शामिल किया गया था वहीं किसी भी राजनीतिक दल द्वारा बिना किसी जोरदार मांग के संशोधनों की आड़ में सरकार ने इन तीनों को बाहर कर दिया और देश बचाओ का नारा लगाने वाली टीम अन्ना ने "जान बची लाखों पाये" का जाप करते हुए आनन् फानन में अनशन, धरने, जेल भरो आन्दोलन, सरीखे अपने वायदों दावों को ठेंगा दिखाते हुए MMRDA मैदान से अपना बोरिया-बिस्तर समेटा और भाग खड़े हुए. इनके ठेंगे पर गया देश और समाज के लिए संघर्ष.
अब अपने आकाओं से नया निर्देश मिलने के बाद नटों और नटनियों की ये टोली कब और कैसे सक्रिय होगी और अपने कौन से नए सर्कस का रंगबिरंगा तम्बू कब कहाँ और कैसे गाड़ेगी...? यह देखना रोचक होगा

शहीदों को शर्मिंदा करने की अपराधी है ये टीम अन्ना

इन निर्लज्जों को 
स्मरण कराना आवश्यक है कि,
 शिवाजी और भगत सिंह
तथा उनके 

अमरशहीद बलिदानी साथियों ने
देश के लिए खुद को 

हँसते-हँसते बलिदान कर दिया था.
वे अमर बलिदानी
इन जनलोकपाली जालसाजों 

कायरों-किन्नरों की तरह
ठंड से डर कर
भाग खड़े होने वाले
गद्दार नहीं थे





9 माह तक देश में चले जनलोकपाली ड्रामे का विश्वासघाती शर्मनाक पटाक्षेप 29 दिसम्बर की रात्रि को हो गया. लोक्संभा में लंगड़े-लूले अधकचरे लोकपाल बिल को जैसे तैसे पास करके, राज्यसभा में उसको अजन्मी संतान का जीवन देकर केंद्र की कांग्रेस गठबंधन सरकार ने अपना वायदा पूरा करने की औपचारिकता अत्यंत कुटिलता पूर्वक पूर्ण करने में सफलता पायी. इस अजन्मी संतान की दाई के रूप में पिछले 9 महीनों से चीख पुकार मचाती रही टीम अन्ना और उसके सरगना अन्ना हजारे इस अजन्मी संतान के जन्म के इस निर्णायक अवसर से ठीक पहले मैदान छोड़ कर भाग खड़े हुए थे. उनके इस कायरतापूर्ण पलायन ने सरकारी साजिश की सफलता की राह बहुत आसान कर दी थी. इस टीम अन्ना की प्रत्येक गतिविधि पर सतर्क नज़र रखते रहे देश के जागरूक नागरिकों को निर्णायक मौके पर इस टीम द्वारा मैदान छोड़ कर भाग खड़े होने की करतूत पर कोई आश्चर्य नहीं हुआ है.
पिछले दिनों दिल्ली में बढ़ी जबर्दस्त ठंड से घबरा कर अन्ना हजारे और “अन्ना टीम” अपना “लोकपाली मजमा” लगाने सजाने के लिए मुंबई पहुंची थी. ये है हमारे कलियुगी विवेकानंद-भगत सिंह-सुखदेव-राजगुरु उर्फ़ अन्ना हजारे उर्फ़ अन्ना गैंग का सच. ध्यान रहे कि ये “अन्ना टीम” और स्वयं अन्ना हजारे देश के सामने अपनी बडबोली बयानबाजी के द्वारा बार बार लगातार खुद को छत्रपति शिवाजी और अमर शहीद भगत सिंह, सुखदेव राजगुरु जैसा ही बताने की कोशिश करते रहे है. खुद को उन अज़र अमर शहीदों का वास्तविक वारिस, असली अनुयायी भी बताते रहे हैं. “दिल दिया है जाँ भी देंगे, ऐ वतन तेरे लिए” सरीखे फिल्मी गाने भी अपने मंचों से खुद अन्ना हजारे तथा “अन्ना टीम” गाती-बजाती रही है. इसलिए इन निर्लज्जों को स्मरण कराना आवश्यक है कि शिवाजी और भगत सिंह तथा उनके अमरशहीद बलिदानी साथियों ने देश के लिए खुद को हँसते-हँसते बलिदान कर दिया था. वे अमर बलिदानी इन जनलोकपाली जालसाजों कायरों-किन्नरों की तरह ठंड से डर कर भाग खड़े होने वाले गद्दार नहीं थे, अतः उन शहीदों के समकक्ष खुद को खड़ा करने के धूर्त प्रयास कर के इस पूरे गैंग ने उन अमर बलिदानियों की अनमोल अद्वितीय अदभुत “बलिदान कथाओं” को कलंकित और अपमानित ही किया है.
प्रश्न स्वाभाविक है कि इस  कलियुगी  विवेकानंद-भगत सिंह-सुखदेव-राजगुरु उर्फ़ अन्ना हजारे उर्फ़ अन्ना टीम को जब दिल्ली की ठंड से घबरा कर दिल्ली से कहीं बहुत दूर जाकर ही अनशन करना था तो ये अनशन करने अपने गाँव रालेगन सिद्धि में ही क्यों नहीं बैठे….?  क्योंकि खुद अन्ना हजारे और टीम अन्ना का तो दावा है की पूरा देश, यानि 121 करोड़ देशवासी इसके “जन लोकपाली” ड्रामे के दीवाने हैं और इस गिरोह द्वारा छल बल झूठ फरेब के सहारे बेचे जा रहे घोर असंवैधानिक ”जनलोकपाली” भांग के प्याले…!!! के नशे में चूर हैं,  तो फिर तो इनके गाँव में भी जनलोकपाली नशेड़ियों की भीड़ लग ही जाती…!!! लेकिन इनको मालूम था की लाखों झूठ फरेब के बावजूद भी इस देश के अधिकांश देशवासी इनके जनलोकपाली भांग के प्याले को पसंद नहीं करते हैं बल्कि उस से
नफरत करते हैं. इसलिए इनको अपने गाँव में रालेगन सिद्धि में रहने वाले डेढ़ दो हज़ार “बंधुआ” लोगों के अतिरिक्त अन्य समर्थकों की तलाश करने में छींकें आ जाती. इसके विपरीत इस टीम को यह पूर्ण विश्वास था कि डेढ़ से दो करोड़ की आबादी वाली मुंबई में अन्ना हजारे के पुराने “यार” राज ठाकरे के दस पांच हज़ार लफंगों के साथ ही साथ दस पंद्रह हज़ार की कुछ और भीड़ का जुगाड़ आसानी से हो जाएगा क्योंकि मुंबई में फुटपाथों और रेलवे स्टेशनों पर सोकर रात बिताने वालों की संख्या ही लाखों में हैं, ऐसे लोगों को दो तीन दिनों तक मुफ्त के खाने के साथ ही गीत संगीत से सजे उत्सवी वातावरण में उठने-बैठने सोने का यह जनलोकपाली “जुगाड़” काफी पसंद आएगा. ध्यान रहे कि अगस्त में रामलीला मैदान के जनलोकपाली मजमें में 15 रुपये लीटर वाली मिनरल वाटर की बोतल तथा बेहतरीन लंच और डिनर पैकेट ताज़े फलों के साथ पूरे 12 दिनों तक अपार दरियादिली से निशुल्क बांटे गए थे. लेकिन अगस्त से दिसम्बर के बीच इस पूरे गैंग की असलियत देश भली-भांति देख सुन रहा था. इनकी देश विरोधी करतूतों से परिचित हो रहा था.  और इस गैंग के विषय में फैसला भी कर  चुका था. परिणाम स्वरुप जब भारत माता के शीश काश्मीर को काट कर पाकिस्तानी गोद में डाल देने की जिद्द करने वाले गद्दारों, पाकिस्तानी आतंकियों के हमदर्दों, अफज़ल गुरु की जान पर अपनी जान छिड़कने वाले राष्ट्र विरोधी पाकिस्तानी एजेंटों, भारतीय सेना को अन्तराष्ट्रीय मंचों पर अपमानित लांक्षित करने और गालियाँ देने वाले राष्ट्रविरोधी दलालों और देवाधिदेव महादेव भगवान् शंकर का उपहास उड़ाने वाले दानवों के साथ अन्ना हजारे का जनलोकपाली जमावड़ा जब बहुत बड़े मीडियाई तामझाम के साथ मुंबई पहुंचा और केवल तीन दिनों के लिए 19 लाख रुपये…!!! के किराये परआलीशान 5 स्टार मैदान पंडाल सजाकर अपने जनलोकपाली मजमे का गोरखधंधा शुरू किया तब  जनता ने उसको, उसके जमावड़े को तथा  उनके द्वारा की जा रही जनलोकपाली भांग के प्याले की मार्केटिंग को अपनी जोरदार ठोकर के साथ ठुकरा दिया

Thursday 22 December 2011

हिसार में बिश्नोई की जीत, चौटाला को बढ़त: ‘जन लोकपाली’ नस्ल का ‘अन्ना ब्रांड’ कठघरे में!


-सतीश चन्द्र मिश्र।।
  मेरा यह लेख वेब पत्रिका मीडिया दरबार में 17 अक्टूबर 2011 को प्रकाशित हुआ.
सबको पता था, सबको खबर थी, सब जानते थे कि, 2009 के चुनाव में अपने पक्ष में चली प्रचंड लहर के बावजूद कांग्रेस हरियाणा के हिसार में तीसरे नम्बर पर थी. इस बार भी वहां वह तीसरे नम्बर पर ही रही, और 2009 की तुलना में उसको लगभग 55,000 वोट कम मिले. यानी पहली बात तो ये कि, अन्ना टीम के ही दावे को यदि सच मान लिया जाए तो भी वो कांग्रेस के केवल 25% मतदाताओं को प्रभावित कर सकी.
अब दूसरा तथ्य यह कि ये कोई 100-200 साल पुरानी बात नहीं है, इसी साल 5 अप्रैल को अन्ना टीम ने जन्तर-मन्तर पर जब अपना “जन लोकपाली” मजमा लगाया था तब भारतीय राजनीति के सर्वाधिक कुख्यात “भ्रष्टाचार शिरोमणियों” में से एक के रूप में पहचाने जाने वाले ओमप्रकश चौटाला भी उस मजमे की शोभा बढ़ाने पहुंचे थे. तब इसी अन्ना टीम ने चौटाला को भ्रष्टाचारी करार देते हुए गाली-गलौज के साथ धक्के मार कर अपमानजनक तरीके से जन्तर-मन्तर से खदेड़़ा था. उल्लेखनीय है कि अजय चौटाला के “स्टार प्रचारक” उनके पिताश्री ओमप्रकाश चौटाला ही थे, तथा उन्हीं ओमप्रकाश चौटाला के सुपुत्र अजय चौटाला को पिछली बार की तुलना में इस बार हिसार में एक लाख वोट ज्यादा मिले हैं. याद यह भी दिलाना प्रासंगिक होगा कि नब्बे के दशक की शुरुआत में ही खुद अजय चौटाला ने लोकतंत्र की खूनी लूट(बूथ कैप्चरिंग ) का वो नृशंस इतिहास रचा था जिसे आज भी “मेहम काण्ड” के नाम से याद किया जाता है. इन घृणित सच्चाइयों के बावजूद हिसार में वास्तविक जीत अजय चौटाला की ही हुई है. क्योंकि 2009 में जब भजनलाल विजयी हुए थे तब भाजपा ने उनके खिलाफ अपना प्रत्याशी उतारा था, जबकि इस बार भाजपा औपचारिक रूप से अपनी पूरी शक्ति के साथ कुलदीप बिश्नोई का समर्थन कर उनकी जीत के लिए प्रयासरत थी.
अतः कम से कम कोई भयंकर मूर्ख या राजनीतिक रूप से अशिक्षित व्यक्ति भी यह तो नहीं ही मानेगा कि “जन लोकपाली” नस्ल का “अन्ना ब्रांड” तथाकथित ईमानदार मतदाता अजय चौटाला को ही मत देने के लिए विवश था, और यदि ऐसा हुआ है तो कम से कम टीम अन्ना को अपने इस प्रकार के “जन लोकपाली” नस्ल के “अन्ना ब्रांड” समर्थकों की सैद्धांतिक गुणवत्ता और वैचारिक क्षमता पर गंभीरता से पुनर्विचार करना चाहिए, क्योंकि उसके “जन लोकपाली” नस्ल के “अन्ना ब्रांड” समर्थकों के पास 38 और विकल्प थे तथा साथ ही साथ अन्ना और अन्ना की पूरी टीम का सर्वाधिक प्रिय विकल्प “किसी को वोट नहीं देना” तो उसके पास था ही.
हिसार उपचुनाव से सम्बन्धित उपरोक्त तथ्यों-तर्कों के अतिरिक्त टीम अन्ना के हवाई दावों की धज्जियाँ हिसार लोकसभा चुनाव के परिणाम के साथ ही आये तीन विधानसभा सीटों के लिए हुए उपचुनावों के परिणामों ने उडायी है.
महाराष्ट्र की खड़कवासला सीट के लिए हुए उपचुनाव में शरद पवार की एनसीपी के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरी कांग्रेस-एनसीपी की उस संयुक्त उम्मीदवार हर्षदा वन्जाले को हार का मुंह देखना पड़ा जो इस सीट से विधायक रहे एमएनएस के दिवंगत विधायक रमेश वन्जाले की विधवा भी हैं.तथा जिन्हें अन्ना के “लाडले” राज ठाकरे की सहानुभूति भी प्राप्त थी.हर्षदा वन्जाले को भाजपा-शिवसेना गठबंधन के संयुक्त भाजपा प्रत्याशी भीमराव ताप्कीर ने 3600 से अधिक मतों से पराजित किया. केन्द्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने यहाँ अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगा रखी थी उनके भतीजे तथा महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री अजीत पवार एवं उनकी सुपुत्री, सांसद सुप्रिया सुले पूरे चुनाव के दौरान खडकवासला में ही डेरा डाले रहे थे.
सबसे रोचक तथ्य यह है कि खड़कवासला विधानसभा क्षेत्र एक अन्य कुख्यात “भ्रष्टाचार शिरोमणी” कांग्रेसी सांसद सुरेश कलमाडी के लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र का ही हिस्सा है. इसके बावजूद अन्ना हजारे या उनकी टीम ने कांग्रेस -एन सी पी गठबंधन की प्रत्याशी के खिलाफ, उनको हराने की कोई अपील नहीं की थी. जबकि अन्ना के गाँव से केवल लगभग 150 KM की दूरी पर ये चुनाव हो रहा था. दरअसल वहाँ हर व्यक्ति ये मान रहा था की हर्षदा वन्जाले की विजय निश्चित है इसीलिए अन्ना और टीम अन्ना अपनी पोल खुलने के भय से खडकवासला उप चुनाव के संदर्भ में शातिर चुप्पी साधे हुए थे.
सिर्फ खड्गवासला में ही नहीं बल्कि बिहार की दरौंदा विधानसभा सीट पर एनडीए की जद (यू) प्रत्याशी ने राजद प्रत्याशी को 20,000 से अधिक मतों से धूल चटायी कांग्रेस के प्रत्याशी का पता ही नहीं चला. वहीं आन्ध्र प्रदेश की बांसवाडा विधानसभा सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी को तेलंगाना राष्ट्र समिति के प्रत्याशी ने लगभग 50,000 मतों के अंतर से रौंदा.
ध्यान रहे कि इन सभी विधानसभा उपचुनावों में अन्ना या अन्ना टीम नाम की कोई चिड़िया भी कहीं चर्चा में नहीं थी. इसके बावजूद सभी स्थानों पर कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ हो गया. फिर हिसार का सेहरा टीम अन्ना अपने सर पर खुद बाँधने की बेशर्म कोशिशें क्यों कर रही है…?
दरअसल आज आये इन सभी उपचुनावों के परिणामों में कांग्रेस को मिली यह करारी शिकस्त 2G में 1.76 लाख करोड़ की सनसनी खेज शर्मनाक सरकारी लूट, CWG में 70 हज़ार करोड़ की शर्मनाक सरकारी लूट, 400 लाख करोड़ के कालेधन पर पर्दा डालने की सरकारी करतूत, 30 हज़ार करोड़ के KG बेसिन घोटाले की लूट, डिफेन्स डील में हुई 9000 करोड़ की सरकारी लूट, एक लाख करोड़ की कीमत वाले इसरो-देवास सौदे को केवल 1200 करोड़ में करने की सरकारी कोशिशों की करतूत, 5000 करोड़ की गोर्शकोव डील में हुई सरकारी लूट. 6000 करोड़ की आणविक ईंधन डील में हुआ घोटाला.और ऐसे ही अनगिनत सरकारी कुकर्मों, आतंकवाद, महंगाई, भय, भूख सरीखी जानलेवा समस्याओं सरीखे सरकारी पापों के जवाब में जनता द्वारा केंद्र में सत्ताधारी दल के मुंह पर मारे गए जबर्दस्त चांटे के समान है.
इस प्रचंड जनाक्रोश को कुछ “जोकर” अपने “जोकपाल” की विजय बता कर उस जनाक्रोश का अपमान कर रहे हैं जिसका शिकार इन जोकरों के दो साथी अहमदाबाद और हाल ही में नयी दिल्ली में बन चुके हैं.

क्या कलमाड़ी, राजा, कनिमोझी और सिब्बल भी हो सकते हैं टीम अन्ना में शामिल.?


-सतीश चंद्र मिश्र।।
  वेब पत्रिका मीडिया दरबार में 23 अक्टूबर 2011 को प्रकाशित लेख
देश में सक्रिय रिश्वतखोरों, घोटालेबाजों,जालसाजों,आर्थिक अपराधियों को इन दिनों अपने फुलप्रूफ बचाव एक नया और अचूक मन्त्र मिल गया है. स्वयम को “जनलोकपाल बिल” का समर्थक घोषित करते ही ऐसे लोगों को उनके द्वारा किये गए हर पाप से मुक्त मान लेने की एक सामाजिक राजनीतिक परम्परा को जन्म देने के कुटिल प्रयास जोर शोर से प्रारम्भ हो चुके हैं.
इसी का परिणाम है कि राष्ट्रीय पुरस्कार कोटे से खुद को मिलने वाली 75% सरकारी रियायत की आड़ में किरण बेदी ने अपनी हवाई यात्रा के लिए 5733 रुपये का टिकट खरीदने के बाद उसी हवाई यात्रा के टिकट खर्च के रूप में फर्जी बिल बनाकर 29181 रुपये वसूले, ऐसी ही अन्य यात्रा प्रकरणों में फर्जी बिलों के सहारे कभी 17134 रुपये के टिकट के लिए 73117 रुपये वसूले तो कभी 14097 रुपये के टिकट लिए 42109 रुपये वसूले. अपनी यात्राओं से सम्बन्धित किरण बेदी का ये फर्जीवाड़ा पिछले कई वर्षों से चल रहा था और ऐसे एक दर्जन उदाहरणों की सूची तो उसी अख़बार ने प्रकाशित की, जिसने किरण के इस फर्जीवाड़े को उजागर किया है.
दस्तावेजी साक्ष्यों के साथ उजागर हुई अपनी इस करतूत से किरण बेदी मुकर तो नहीं सकीं किन्तु अपना बचाव ये कह कर किया कि मैं वसूली गयी ज्यादा धनराशि को क्योंकि अपने ही NGO को दान करती रहीं हूँ इसलिए इसमें कुछ भी गलत नहीं है और ये मेरा होम इकोनॉमिक्स है. किरण बेदी ने अपनी सफाई में यह भी कहा कि ,क्योंकि  हम जनलोकपाल बिल के लिए आन्दोलन कर रहे हैं इसलिए सरकार हमें बदनाम करने के लिए ऐसे हथकंडे इस्तेमाल कर रही है. किरण बेदी की यह सफाई कई प्रश्नों को जन्म देती है. क्या पिछले कई वर्षों से वो अपनी हवाई यात्राओं का फर्जीवाड़ा सरकार के कहने पर कर रही थी.? क्या उनके फर्जी यात्रा बिल उनको सरकार बनवा कर देती थी…? क्या उनकी तथाकथित “होम इकोनामिक्स” का सिद्धांत सरकार द्वारा बनाया और लागू करवाया गया था…?
और सबसे बड़ा सवाल तो ये कि CWG घोटाले के महाखलनायक सुरेश कलमाडी यदि यह कहें कि उन्होंने 1400 से 2000 गुणा अधिक तक के मूल्य पर खरीदी गयी वस्तुओं की खरीददारीं में की गयी जालसाजी के कारण खुद को मिले लाभ की रकम अपने ही एक NGO को दान कर दी है तो क्या इस तर्क के आधार पर सुरेश कलमाडी को निर्दोष मान लिया जाना चाहिए…? इसके अतिरिक्त किरण बेदी के पक्ष में टीम अन्ना और उसके भक्त कुछ न्यूज चैनलों द्वारा यह तर्क भी दिया जा रहा है कि किरण बेदी की हवाई यात्राओं के बिल के फर्जीवाड़े में सारा लेनदेन बैंकों के चेकों के द्वारा किया गया है अतः इसको भ्रष्टाचार की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता. यह कुतर्क देते समय टीम अन्ना और उसके भक्त कुछ न्यूज़ चैनल यह क्यों भूल गए की सारे सरकारी सौदों और ठेकों में समस्त भुगतान सरकारी चेकों के माध्यम से ही किया जाता है, तो क्या यह मान लिया जाए कि उनमें किसी प्रकार के भ्रष्टाचार कि कोई संभावना होती ही नहीं है…? इसके अतिरिक्त पुलिस की नौकरी के दौरान किरण बेदी को मिले वीरता पदक के कारण उनको उनकी हवाई यात्राओं, रेल यात्राओं में मिलने वाली 75 % की छूट क्या  इसलिए दी जाती रही है कि वो उसकी कीमत फर्जी बिल बनाकर दूसरों से वसूलें.?
इसी प्रकार टीम अन्ना के एक दूसरे महारथी अरविन्द केजरीवाल हैं. ये महाशय उन पर बकाया लाखों रुपये की सरकारी रकम केवल इसलिए नहीं चुकाना चाहते क्योंकि वो खुद को “जनलोकपाल बिल” के सबसे बड़े झंडाबरदारों में से एक मानते हैं. उस बकाये को लेकर खुद को दी जाने वाली हर कानूनी नोटिस को अरविन्द केजरीवाल अब यह कहकर नकार रहे हैं की “जनलोकपाल बिल” की उनकी मांग के कारण सरकार उनको परेशान करने के लिए ऎसी नोटिस भिजवा रही है. जबकि सच ये है की 2007 में खुद केजरीवाल बाकायदा पत्र लिखकर अपने ऊपर बकाये की बात तथा उस बकाये को नहीं चुकाने का दोषी भी स्वयम को मानते हुए सरकार से उस बकाये को माफ़ करने की प्रार्थना भी कर चुके हैं. लेकिन  सरकार ने उनकी मांग को असंवैधानिक करार देते हुए उसी समय अस्वीकार कर दिया था. तब 2007 में अरविन्द केजरीवाल किस जनलोकपाल की कौन सी लड़ाई लड़ रहे थे.? उल्लेखनीय है की इस समयावधि के दौरान मैग्सेसे पुरस्कार समेत कई अन्य पुरस्कारों के रूप में केजरीवाल लगभग 30 लाख रुपये की राशी प्राप्त कर उसे अपने ही NGO को दान में दिया गया दिखा चुके हैं लेकिन सरकारी बकाये के लिए खुद के पास पैसा नहीं होने का रोना सार्वजनिक रूप से रोते हुए उस बकाये को नहीं चुकाने की जिद्द पर अड़े हुए हैं.
इसी प्रकार शत-प्रतिशत वेतन लेने के बावजूद अपनी नौकरी से महीनों से गायब, अपने अध्यापन कार्य के दायित्व एवं कर्तव्य का केवल दस से बीस प्रतिशत तक निर्वहन करने वाला एक भ्रष्ट शिक्षक इन दिनों भ्रष्टाचार की “मुख़ालफत” का नकाब पहन के ईमानदारी का सबसे ऊंचा झंडा लेकर कर घूम रहा है और टीम अन्ना के मंच से ईमानदारी, नैतिकता के पाठ सिखाने वाले धुआंधार भाषण भी दे रहा है …!!! टीम अन्ना की भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम का प्रवक्ता भी बना हुआ है. अपनी नेतागिरी के चक्कर में सैकड़ों निर्दोष छात्रों के भविष्य से निर्मम खिलवाड़ करने के भ्रष्टाचार से सम्बन्धित यह मामला उन “गलेबाज़” कवि कुमार विश्वास का है जो चुटकुलों और जुमलों की चटनी के साथ सतही रोमांटिक कविताओं की सस्ती चाट के मंचीय “गवैय्या” है और इन दिनों सैकड़ों छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ करते हुए अन्ना टीम के भाषणबाज़ प्रवक्ता बनकर घूम रहे है और अपने इन हथकंडों पर उठ रही उँगलियों को केवल इसलिए सरकारी साज़िश बता रहे हैं क्योंकि ये महाशय खुद को “जनलोकपाल बिल” आन्दोलन का झंडाबरदार मानते हैं.
उल्लेखनीय है कि इस से पहले शांति भूषण-प्रशांत भूषण से सम्बन्धित ज़जों कि “सेटिंग” की बात वाली सही सिद्ध हो चुकी CD तथा नोयडा में माया सरकार से कौड़ियों के मोल मिले करोड़ों के भूखंडों और करोड़ों के भूराजस्व की चोरी की बात को भी इसी प्रकार जनलोकपाल आन्दोलन की दुहाई देकर उन पर धूल  झोंक देने के कुटिल प्रयास किये गए थे.
आखिर टीम अन्ना किस प्रकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ अपने दोहरे चेहरे चरित्र और चाल वाली ये कैसी लड़ाई लड़ रही है…???  इन दिनों अपने भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने के लिए जिस तरह का कुतर्क टीम अन्ना के दिग्गज और उसके भक्त दे रहें हैं. उसके चलते उनको अपने जनलोकपाल बिल में ये भी नियम बनवा देना चाहिए कि यदि कोई घूसखोर,चोर,लुटेरा, या किसी भी अन्य प्रकार का कोई आर्थिक अपराध करने वाला व्यक्ति यदि NGO बना कर अपने भ्रष्टाचार से की गयी अवैध कमाई उसमे जमा करता हो तथा खुद को टीम अन्ना के जनलोकपाली ड्रामे का समर्थक घोषित करता हो तो उसको अपराधी नहीं माना जायेगा एवं उसको पकड़ने वाले, गिरफ्तार करने वाले अधिकारी कर्मचारी को ही कठोर दंड दिया जाएगा……!!!
मेरा तो यह मानना है कि अपने इन नैतिक मानदंडों के चलते निकट भविष्य में टीम अन्ना को कलमाडी, राजा, कनिमोझी, चिदम्बरम, सिब्बल, लालू, मायावती, मारन और अमर सिंह को भी जनलोकपाल की कोर कमेटी में शामिल करवाने का प्रयास करना चाहिए. क्योंकि दो चोरों में कोई अंतर नहीं होता भले ही उन दोनों में से एक हीरा चोर हो और दूसरा खीरा चोर ही क्यों ना हो. क्योंकि बात अवसर की होती है, जिसे हीरा चुराने का मौका मिलता है वो हीरा चुरा लेता है और जिसे खीरा चुराने का मौका मिलता है वो खीरा चुरा लेता है. होते दोनों ही चोर हैं और एक सी ही मानसिकता और एक सी ही प्रकृति एवं प्रवत्ति के मालिक होते हैं.
वर्तमान यूपीए/कांग्रेस सरकार की तुलना में कई गुणा अधिक भ्रष्ट एवं सशक्त इंदिरा सरकार के खिलाफ 1974 में जयप्रकाश नारायण ने जब निर्णायक जनयुद्ध प्रारम्भ किया था तब लाख कोशिशों और अनेकों अराजक हथकंडों के बावजूद इंदिरा गाँधी और उनकी निरंकुश सरकार जयप्रकाश नारायण तथा उनके प्रमुख साथी-सहयोगियों के खिलाफ किसी भी प्रकार के भ्रष्टाचार का कोई आरोप तक नहीं लगा सकी थी अंततः इंदिरा ने उनको विदेशी ताकतों का एजेंट बताकर जेल के सींखचों के पीछे पहुंचा दिया था.
याद यह भी दिला दूं कि जयप्रकाश नारायण ने तत्कालीन इंदिरा सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलन करने के लिए उसी सरकार से आन्दोलन करने की अनुमति, आन्दोलन करने के लिए सुविधाजनक स्थान दरी, दवाई, सफाई, पानी और बिजली की सुचारू व्यवस्था की मांग नहीं की थी. सरकार और उसकी पुलिस से चिट्ठी लिखकर बार बार ये आश्वासन नहीं माँगा था कि उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जाएगा (अन्ना के रामलीला मजमें के लिए ये सारे हथकंडे अपनाये गए थे). इसकी बजाय दो से ढाई वर्षों तक कारागर के सींखचों के पीछे भयंकर यातनाएं भोगकर जयप्रकाश नारायण और उनके साथी सहयोगियों ने अपने जनसंघर्ष को निर्णायक बिंदु तक पहुँचाया था. आज अभी 6 महीने भी नहीं बीते हैं और स्थिति यह है की अन्ना टीम का हर सदस्य दस्तावेजी सबूतों के साथ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों से घिरा नज़र आ रहा है. अतः अन्ना हजारे और उनकी जन-लोकपाल मुहिम की तुलना जयप्रकाश नारायण एवं उनके कालजयी आन्दोलन से करने वालों को अपनी तुलना की समीक्षा गंभीरता पूर्वक करनी चाहिए.

काले धन पर बाबा रामदेव की सिफारिशें नहीं मानेगी सरकार, अन्ना ने कहा कोई बात नहीं


-सतीश चंद्र मिश्रा।।
वेब पत्रिका मीडिया दरबार में 25 सितम्बर को प्रकाशित लेख
केंद्र सरकार ने रामदेव को मनाने के लिए केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) के अध्यक्ष की अगुआई में जो उच्चस्तरीय समिति गठित की थी उसने  23 सितम्बर को हुई अपनी बैठक में स्पष्ट कर दिया कि समिति योग गुरु के एक भी प्रमुख सुझाव पर अमल करने नहीं जा रही है। बैठक में यह भी स्पष्ट किया गया कि काले धन को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित नहीं किया जा सकता तथा समिति काले धन की समस्या से निपटने के लिए कोई नया कानून बनाने के भी खिलाफ है. आश्चर्यजनक रूप से अन्ना हजारे और टीम अन्ना ने इस समाचार पर गांधी जी के तीन बंदरों की तरह का रुख अपनाया। इस से पूर्व बीते 21 सितम्बर को प्रधान मंत्री को लिखे गए अपने पत्र में अन्ना हजारे ने लोकपाल पर सरकार के आश्वासन की तारीफ करते हुए लिखा था, ”भ्रष्टाचार की रोकथाम की दिशा में यह एक अच्छी पहल है।”
इसी पत्र में राजीव गांधी की तारीफ में कसीदे पढ़ते हुए अन्ना ने बार-बार राजीव गांधी के स्थानीय स्वशासन के काम की तारीफ की है। उन्होंने लिखा है कि राजीव के प्रयासों से ही संविधान में 73वें और 74वें संशोधन के जरिए ग्राम सभा और शहरी निकायों को अहमियत मिली। भू अधिग्रहण के संबंध मे उन्होंने ग्राम सभाओं को अधिक शक्ति देने को कहा है। इस बार उन्होंने जन लोकपाल बिल के किसी खास प्रावधान या इसकी समय सीमा को ले कर कुछ भी नहीं लिखा है। बल्कि कहा है कि बार-बार आंदोलन से उन्हें कोई खुशी नहीं होती। इससे जनता के प्रति सरकार की अनास्था और अनादर की भावना का संदेश जाता है। ध्यान रहे कि इस से पहले खुद को भ्रष्टाचार के खिलाफ सर्वकालीन सर्वश्रेष्ठ योद्धा मानने वाले अन्ना हजारे मुक्त कंठ से इंदिरा गांधी की जबर्दस्त प्रशंसा के गीत गा चुके हैं.
पहले इंदिरा फिर राजीव और अब कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार की प्रशंसा, विशेषकर भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष के संदर्भ में, अन्ना द्वारा दिए जा रहे राजनीतिक संकेतों-संदेशों का चमकता हुआ दर्पण है. अन्ना हजारे इस से पूर्व अडवाणी की रथयात्रा, मोदी के अनशन तथा भाजपा की मंशा पर तल्ख़ तेवरों के साथ अपने तीखे प्रश्नों के जोरदार हमले कर चुके हैं.
12 सितम्बर को सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से नरेन्द्र मोदी विरोधियों के मुंह पर पड़े जोरदार थप्पड़ के तत्काल पश्चात् 13 सितम्बर को अन्ना हजारे की सक्रियता अचानक ही गतिमान  हो गयी थी. IBN7 के राजदीप सरदेसाई के साथ बातचीत में अन्ना हजारे ने स्पष्ट किया था कि कांग्रेस यदि भ्रष्टाचार में ग्रेजुएट है तो भाजपा ने पी.एच.डी. कर रखी है. अन्ना का यह निशाना 2014 के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रख कर साधा गया था. क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के उपरोक्त निर्णय के पश्चात् 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद के भाजपा के प्रत्याशी के रूप में नरेन्द्र मोदी के उभरने की प्रबल संभावनाओं को बल मिला था. अतः अन्ना हजारे को ऎसी किसी भी सम्भावना पर प्रहार तो करना ही था.
अन्ना का यह कुटिल राजनीतिक प्रयास इतने पर ही नहीं थमा था. उसी बातचीत में उन्होंने यह भी कहा कि वह किसी गैर कांग्रेसी-गैर भाजपा दल का समर्थन करेंगे. बातचीत में अन्ना ने मनमोहन सिंह को सीधा-साधा ईमानदार व्यक्ति बताया तथा ये भी कहा कि देश को आज इंदिरा गाँधी सरीखी “गरीब-नवाज़” नेता की आवश्यकता है. ज़रा इसके निहितार्थ समझिए एवं गंभीरता से विचार करिए कि अन्ना हजारे को यह कहते समय क्यों और कैसे यह याद नहीं रहा कि इंदिरा गाँधी ने ही दशकों पहले भ्रष्टाचार को वैश्विक चलन बताते हुए इसको कोई मुद्दा मानने से ही इनकार कर दिया था तथा भ्रष्टाचार का वह निकृष्ट इतिहास रचा था जिसकी पतित पराकाष्ठा “आपातकाल” के रूप में फलीभूत हुई थी.
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इंदिरा गांधी को चुनावी भ्रष्टाचार का दोषी घोषित किया था. लेकिन अन्ना हजारे का शायद ऎसी कटु सच्चाइयों वाले कलंकित इतिहास से कोई लेनादेना नहीं है. हजारे की ऐसी घोषणाओं का सीधा अर्थ यह है कि उनके नेतृत्व में टीम अन्ना केंद्र में सत्तारूढ़ कांग्रेस गठबंधन सरकार के विरोधी मतों को देश भर में तितर-बितर कर उनकी बन्दरबांट करवाने के लिए कमर कस रही है. उसकी यह रणनीति मुख्य विपक्षी दल भाजपा को हाशिये पर पहुँचाने का अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य करेगी. टीम अन्ना ऐसा करके किसकी राह आसान करेगी यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है. आश्चर्यजनक एवं हास्यस्पद तथ्य यह है कि यही अन्ना और उनकी टीम कुछ दिनों पहले तक देश की जनता की चुनावी अदालत का सामना करने से मुंह चुराती नज़र आ रही थी. इसके लिए यह लोग भांति-भांति के फूहड़ तर्क दे रहे थे.
यहाँ तक कि देश के मतदाताओं पर एक शराब की बोतल और कुछ रुपयों में बिक जाने का घृणित आरोप सार्वजनिक रूप से निहायत निर्लज्जता के साथ लगा रहे थे. अतः केवल कुछ दिनों में ही देश में ऐसा कौन सा महान राजनीतिक-सामाजिक परिवर्तन हुआ देख लिया है इस अन्ना गुट ने? जो अन्ना खुद के चुनाव लड़ने पर देश के मतदाता को केवल  एक शराब की बोतल और कुछ रुपयों में बिक जाने वाला बता उसे लांक्षित-अपमानित करने का दुष्कृत्य कर अपनी जमानत तक गंवा देने की बात कर रहे थे वही अन्ना हजारे अब पूरे देश में केवल अपने सन्देश के द्वारा ईमानदार नेताओं की एक पूरी फौज तैयार कर देने का दम्भी दावा जोर-शोर से कर रहे हैं. खुद अन्ना के अनुसार जो मतदाता पिछले 64 सालों से केवल एक शराब की बोतल और कुछ रुपयों में बिकता चला आ रहा था, उसमें अचानक अनायास ऐसा हिमालयी परिवर्तन हजारे या उनकी टीम को किस आधार पर होता दिखा है ?

जब अपने मंच पर चार-पांच ईमानदार भी नहीं जमा कर पाए अन्ना, तो भ्रष्टाचार से क्या खाक लड़ेंगे.?




कौन है बेदाग? : टीम अन्ना मंच पर
वेब पत्रिका मीडिया दरबार में 25 सितम्बर को प्रकाशित लेख
मीडिया में जिस अग्निवेश की बदनीयती और बेईमानी के बेनकाब होने के बाद उसको अन्ना हजारे ने अपने से अलग किया है उस भगवाधारी के पाखंड की करतूतों का काला चिटठा दशकों पुराना है. लेकिन इसके बावजूद वह अन्ना हजारे की टीम का अत्यंत महत्वपूर्ण सदस्य बना हुआ रहा. प्रशांत भूषण-शांति भूषण के ” सदाचार ” के किस्से दिल्ली पुलिस को CFSL से मिली CD की जांच रिपोर्ट तथा इलाहाबाद के राजस्व विभाग एवं नोएडा भूमि आबंटन के सरकारी दस्तावेजों में केवल दर्ज ही नहीं हैं बल्कि सारे देश के सामने उजागर भी हो चुके हैं. अपनी नौकरी से इस्तीफे तथा खुद पर बकाया सरकारी देनदारी के विषय में लगातर 4 दिनों तक झूठे दावे करने के पश्चात स्वयम द्वारा 4 वर्ष पूर्व विभाग को लिखी गयी एक चिट्ठी में अपने दोषी होने की बात स्वीकारने की सच्चाई एक समाचार पत्र के माध्यम से उजागर होने के पश्चात अरविन्द केजरीवाल को वह सच भी स्वीकरना पडा जो खुद केजरीवाल द्वारा लगातार बोले गए झूठ को तार-तार कर बेनकाब कर रहा था.
सबसे गंभीर प्रश्न तो यह है कि जो अन्ना हजारे महीनों तक साथ घूमने के पश्चात् अपने इर्द-गिर्द पूरी तरह पाक-साफ़ पांच ईमानदार लोगों को एकत्र नहीं कर सके वो अन्ना हजारे किस जादू की कौन सी छड़ी से पूरे देश में हजारों ईमानदार “नेताओं” की फौज खडी कर देंगे…? चुनावी मैदान में उतरे व्यक्तियों में से किसी को भी बेईमान और किसी को भी ईमानदार घोषित करने का अधिकार केवल अन्ना हजारे के पास क्यों और किस अधिकार के तहत होगा…?  चुनावी मैदान में उतरे व्यक्तियों में से किसी को भी बेईमान और किसी को भी ईमानदार घोषित करने का उनका आधार,उनका मापदंड क्या होगा…?  उनके ऐसे निर्णयों का स्त्रोत क्या और कितना विश्वसनीय होगा…? ऐसा करते समय क्या अन्ना हजारे और टीम अन्ना के सदस्य  स्वयं पर उठी उँगलियों और लगने वाले आरोपों का भी तार्किक तथ्यात्मक स्पष्टीकरण सत्यनिष्ठा के साथ देने की ईमानदारी दिखायेंगे या फिर इन दिनों की भांति केवल यह कहकर पल्ला झाडेंगे कि हमको परेशान करने के लिए ऐसे सवाल पूछे जा रहे हैं इसलिए हम इन सवालों का जवाब नहीं देंगे.
अन्ना हजारे ने 13 सितम्बर को ही टाइम्स नाऊ न्यूज़ चैनल के साथ हुई अपनी बातचीत के दौरान बाबा रामदेव से कोई सम्पर्क सम्बन्ध नहीं रखने, उनका कोई सहयोग-समर्थन नहीं करने का ऐलान भी किया, इसी के साथ लाल कृष्ण अडवाणी द्वारा भ्रष्टाचार विरोधी रथयात्रा निकाले जाने की घोषणा को मात्र एक शिगूफा कहकर अन्ना हजारे ने उसका जबर्दस्त विरोध भी किया. आखिर कौन है ये अन्ना हजारे जो कभी ग्राम प्रधान का चुनाव लड़कर जनता की अदालत का सीधा सामना करने का साहस तो नहीं जुटा सका लेकिन देश में कोई भी व्यक्ति या कोई भी दल या कोई भी संगठन किसी मुद्दे पर क्या करे.? क्या ना करे.? इसका फैसला एक तानाशाह की भांति सुनाने की जल्लादी जिद्द निरंकुश होकर कर रहा है.
लाल कृष्ण अडवाणी या किसी भी अन्य राजनेता या राजनीतिक दल द्वारा केंद्र सरकार के भ्रष्टाचार के विरोध में किये जाने वाले धरना, प्रदर्शनों, आन्दोलनों एवं आयोजनों का विरोध कर उनके खिलाफ ज़हर उगल कर अन्ना हजारे और टीम अन्ना ने केंद्र सरकार के रक्षा कवच की भूमिका में उतरने का सशक्त सन्देश-संकेत दिया है. अन्ना गुट की यह करतूत केवल और केवल इस देश की राजनीतिक प्रक्रिया-परम्परा को बंधक बनाकर उसकी मूल आत्मा को रौंदने-कुचलने का कुटिल षड्यंत्र मात्र तो है ही साथ ही साथ वर्तमान सत्ताधारियों के भ्रष्टाचार के खिलाफ उठने वाली किसी भी आवाज़ का गला घोंटने का अत्यंत घृणित षड्यंत्र भी है.
स्वयम अन्ना के नेतृत्व वाली टीम अन्ना द्वारा लोकपाल बिल की स्टैंडिंग कमिटी के सदस्य सांसदों के घर के बाहर धरना देकर उनपर निर्णायक दबाव बनाने की घोषणा भी इसी षड्यंत्र के अंतर्गत रची गयी कुटिल रणनीति का ही एक अंग है. क्योंकि इसी देश में 1.76 लाख करोड़ की 2G घोटाला लूट में प्रधानमंत्री और तत्कालीन वित्तमंत्री चिदम्बरम की संलिप्तता साक्ष्यों के साथ प्रमाणित करने वाली पीएसी की रिपोर्ट को नियमों की धज्जियाँ उड़ाकर कूड़े की टोकरी में फिंकवा चुके उसी पीएसी के सदस्य रहे कांग्रेस तथा उसके सहयोगी सत्तारूढ़ दलों के 11 संप्रग सांसदों के खिलाफ अन्ना हजारे और टीम अन्ना ने इसी तरह दबाव बनाना तो दूर उनके खिलाफ आजतक एक शब्द भी क्यों नहीं बोला…?
क्या 2G घोटाले के द्वारा की गयी 1.76 लाख करोड़ की सनसनीखेज सरकारी लूट अन्ना हजारे की “भ्रष्टाचार की परिभाषा” में नहीं आती है…? यदि ऐसा है तो अन्ना हजारे इस देश को बताएं कि 1.76 लाख करोड़ की सरकारी राशि की सनसनीखेज लूट को वो भ्रष्टाचार क्यों नहीं मानते हैं.?  और यदि मानते हैं तो उस भ्रष्टाचार का भांडा फोड़ने वाली पीएसी की रिपोर्ट की धजियाँ उड़ाने वाले सांसदों पर दबाव बनाने, उनको धिक्कारने से मुंह क्यों चुरा रहे हैं.? क्या अन्ना हजारे और टीम अन्ना के स्वघोषित दिग्गज ऐसे किसी धरने/मुहिम और उसके जिक्र से भी इसलिए मुंह चुरा रहे हैं , क्योंकि ऐसे किसी धरने/मुहिम का निशाना केवल सत्तारूढ़ कांग्रेस और उसके सहयोगी दल ही बनेंगे तथा मनमोहन सिंह और चिदम्बरम को “तिहाड़” में ए राजा, कनिमोझी, के पड़ोस में भी रहना पड़ सकता है.? जबकि मनमोहन को तो स्वयं अन्ना हजारे आज भी सीधा-सच्चा-ईमानदार मानते हैं…!
ज्ञात रहे कि 1.76 लाख करोड़ के 2G घोटाले, 70 हज़ार करोड़ के CWG घोटाले या KG बेसिन घोटाले में रिलायंस के साथ मिलकर की जाने वाली लगभग 30 हज़ार करोड़ की सनसनीखेज लूट तथा बाबा रामदेव द्वारा उठाये जा रहे 400 लाख करोड़ के कालेधन की वापसी सरीखे सर्वाधिक सवेंदनशील मुद्दों पर अन्ना हजारे और टीम अन्ना के अन्य सेनापति गांधी के तीन बंदरों की भांति अपने आँख कान मुंह बंद किये हैं, तथा अपनी चुप्पी और उपेक्षा कर इन मुद्दों पर देश का ध्यान भी केन्द्रित ना होने देने का भरपूर प्रयास कर रहे हैं. अपनी इस कुटिल रणनीति के पक्ष में अन्ना हजारे और उनकी टीम यह कह रही है कि अभी हमारा ध्यान केवल जनलोकपाल पर केन्द्रित है. अन्ना हजारे और उनकी टीम के दिग्गजों का यह कुतर्क क्या पुलिस के उस भ्रष्ट और बेशर्म सिपाही की याद नहीं दिलाता जो अपनी आँखों के सामने हो रही लूट या क़त्ल की घटना को अनदेखा कर उपेक्षा के साथ यह कहते हुए आगे बढ़ जाता है कि ये घटना मेरे थाना क्षेत्र में नहीं घटित हुई है.
अतः पाठक स्वयं निर्णय करें कि स्टैंडिंग कमिटी के सदस्य सांसदों के घर के बाहर धरना देकर सस्ती लोकप्रियता वाहवाही लूटने को आतुर खुद अन्ना हजारे तथा उनकी फौज के सेनापति भ्रष्टाचार के हमाम में देश के सामने पूरी तरह नंगे हो चुके पीएसी के उन 11 सदस्य सांसदों की करतूत के जिक्र से भी क्यों मुंह चुरा रहे है

Sunday 27 November 2011

फेसबुक और ट्विटर के समर्थकों को तो एक दारू की बोतल और कुछ रुपयों में कोई नहीं खरीद सकता...!!! इसके बावजूद समर्थन के मामले में अन्ना गैंग और खुद अन्ना यहाँ भी कंगाल क्यों हैं.?

 अन्ना गैंग आदेशात्मक शैली में
देश की संसद और संविधान को
अपना स्वरचित जनलोकपाली पहाड़ा
पढ़वाने की कोशिश कर रहा
है
संसद के शीतकालीन सत्र की शुरुआत के साथ ही सरगर्म हुए राजनीतिक वातावरण में अन्ना टीम  ने एक बार फिर कमर कस ली है. इसके लिए अन्ना टीम ने एक बार फिर अपना “जनलोकपाली” कीर्तन प्रारम्भ किया है. पिछले तीन-चार दिनों से  न्यूज चैनलों पर ये अन्ना गैंग फिर चमक रहा है और आदेशात्मक शैली में देश की संसद और संविधान को अपना स्वरचित जनलोकपाली पहाड़ा पढ़वाने की कोशिश करता भी दिख रहा है. 
यह अन्ना टीम न्यूज चैनलों के वातानुकूलित स्टूडियोज़ में बैठकर121 करोड़ देशवासियों के पूर्ण समर्थन के अपने दावे के सहारे देश के लिए, देश की तरफ से सोचने, विचारने, आदेश देने, और फैसला लेने के इकलौते ठेकेदार के रूप में स्वयम को प्रस्तुत कर रही है..
इस से पहले रामलीला मैदान में लगाये गए अपने “जनलोकपाली” मजमें के दौरान भी इस अन्ना टीम ने ऐसे ही हवाई दावों का भ्रमजाल कुछ न्यूज चैनलों के सहयोग और समर्थन से बढ़ चढ़ कर फ़ैलाने की कुटिल कोशिशें की थी, जबकि उसका यह दावा वास्तविकता से हजारों कोस दूर है. गणितीय प्रतीकों में कहूँ तो 5 प्रतिशत भी सही नहीं है. तथ्यपरक यथार्थ की तार्किक कसौटी इस अन्ना टीम द्वारा खुद को प्राप्त 121 करोड़ देशवासियों के समर्थन के दावे की धज्जियाँ उड़ाती स्पष्ट दिखायी देती है.
ज्ञात रहे की इस अन्ना टीम के जनलोकपाली आन्दोलन का सबसे बड़ा एवं मुख्य समर्थक वर्ग इस देश के पढ़े लिखे मध्य वर्ग, उच्च मध्यवर्ग एवं नौजवानों को ही माना गया था, इंटरनेट की ट्विटर एवं फेसबुक सरीखी दुनिया को इस टीम के समर्थन की सर्वाधिक उर्वर भूमि कहा गया. इसके अंध समर्थक न्यूज चैनलों एवं खुद इस अन्ना गैंग का भी यही मानना था. इसीलिए इसने अपने तथाकथित जनलोकपाल बिल का मसौदा इस देश तक इंटरनेट के माध्यम से ही पहुंचाया था. उस मसौदे से सम्बन्धित सुझावों शिकायतों को प्राप्त करने के लिए भी इस टीम ने अपनी वेब साईट और Email को ही अपने और जनता के बीच का माध्यम बनाया था.
फेसबुक और ट्विटर पर अपने जनलोकपाली मजमे को मिले तथाकथित 121 करोड़ देशवासियों के ऐतिहासिक समर्थन के सामूहिक गीत अन्ना टीम ने कुछ न्यूजचैनलों के साथ संयुक्त रूप से गए थे.
उल्लेखनीय है की अप्रैल 2011 में खुद फेसबुक द्वारा जारी किये गए आंकड़ों के अनुसार भारत में फेसबुक इस्तेमाल करने वालों की संख्या 35.7% की छमाही वृद्धि दर के साथ लगभग 2 करोड़ 30 लाख थी, अर्थात आज यह संख्या लगभग 3 करोड़ के आसपास होगी. अब जरा ध्यान से जानिये उस सच्चाई को कि इन 3 करोड़ देशवासियों के मध्य इस अन्ना टीम के समर्थन कि स्थिति क्या है.
फेसबुक में इस अन्ना टीम की संस्था INDIA AGAINST CORRUPTION के समर्थन में बने ग्रुपों/पेजों की कुल संख्या 492 है. 
खुद अन्ना टीम द्वारा बनाये गए इसके मुख्य पेज के समर्थकों की संख्या 5 लाख 42 हज़ार के करीब है. इसके मुख्य पेज और शेष 491 पेजों के समर्थकों की संख्या का कुल योग लगभग 8 लाख 20 हज़ार के करीब है. ज़रा ध्यान दीजिये की 3 करोड़ के करीब फेसबुक की भारतीय आबादी में से कुल 8 लाख 20 हज़ार लोगों ने इस टीम के मंच को अपना समर्थन दिया है. फेसबुक संसार की भारतीय आबादी के केवल 2.73% सदस्यों ने ही इस अन्ना टीम  और उसके मंच को अपना समर्थन दिया है. यद्यपि फेसबुक की दुनिया का हर सदस्य यह जानता है की एक सदस्य कई-कई ग्रुपों और पेजों को अपना समर्थन दे सकता है और देता भी है. यदि ऐसे साझा समर्थकों की संख्या विश्लेषित की जाए तो 2.73% समर्थन का उपरोक्त आंकड़ा 1.5% या फिर 1.75% के आसपास ही पहुंचेगा. 
इस अन्ना टीम की चौकड़ी के सबसे मेन मेम्बर अरविन्द केजरीवाल के नाम से जो मुख्य पेज है उसमे इसके समर्थकों की संख्या है 48790.
केजरीवाल के कुछ अंध भक्तों ने भी केजरीवाल के समर्थन के पेज बना रखे हैं. ऐसे कुल पेजों की संख्या है 53. केजरीवाल के मुख्य पेज समेत इन 54 पेजों में केजरीवाल समर्थकों की कुल संख्या है 1 लाख 34 हज़ार 971. अर्थात केवल 0.44% समर्थन
इसके बाद अन्ना टीम की मेम्बर नम्बर 2 है किरण बेदी.
किरण बेदी के नाम से जो मुख्य पेज है उसमें बेदी समर्थकों की संख्या है 1 लाख 8 हज़ार 684.
किरण बेदी के भी कुछ समर्थकों ने बेदी के समर्थन के पेज बना रखे हैं.
ऐसे कुल 76 पेज हैं और किरण बेदी के मुख्य पेज समेत इन 77 पेजों में बेदी समर्थकों की कुल संख्या है 2 लाख 13 हज़ार 387.
अर्थात केवल 0.71% समर्थन
इसके बाद नाम आता है अन्ना टीम  के फौजी नम्बर तीन प्रशांत भूषण का.
इसके समर्थन के नाम से कुल 6 पेज हैं और इन छहों पेजों में इसके समर्थकों की कुल संख्या है केवल 2369.
अर्थात केवल 0.01% समर्थन, और इस चौकड़ी के मेम्बर नम्बर चार मनीष सिसोदिया के व्यक्तिगत पेज में समर्थकों की संख्या है 4988 तथा इसके समर्थन के पेज में इसके समर्थकों की संख्या है केवल 124.
अर्थात 3 करोड़ भारतीय सदस्यों वाले फेसबुक के संसार में अन्ना गैंग की इस चौकड़ी को कुल 350851 लोगों का समर्थन प्राप्त है.
एक बार पुनः यह उल्लेख कर दूं की इसमें अधिकांश संख्या ऐसे साझा समर्थकों की होती है जो कई-कई पेजों पर जाकर अपना समर्थन व्यक्त करते हैं, और स्वाभाविक रूप से केजरीवाल को समर्थन देने वाला व्यक्ति किरण बेदी का भी समर्थक होगा. यदि यह भी जांच लिया जाए तो इस अन्ना टीम  के समर्थन की सबसे उर्वर भूमि मानी जाने वाली फेसबुक की 3 करोड़ भारतीयों की दुनिया में इस चौकड़ी के समर्थकों का आंकडा 2 से 1.5 लाख के आंकड़े के बीच झूलता नज़र आएगा.
इस टीम के मुखिया खुद अन्ना हजारे के मुख्य पेज पर समर्थकों की संख्या 3 लाख 21 हज़ार 448 है तथा अन्ना हजारे के समर्थन में बने 79 अन्य पेजों के समर्थकों की संख्या इसमें जोड़ देने पर यह आंकडा पहुँच जाता है 5 लाख 96 हज़ार 779 पर.
अर्थात केवल 01.98% समर्थन. जाहिर सी बात है की जो IAC समर्थक वही अन्ना समर्थक है.
इसी समर्थन में से अन्ना टीम की चर्चित चौकड़ी भी अपने समर्थन की बन्दर बाँट किये हुए है.
कुल मिलाकर यह स्पष्ट होता है कि 3 करोड़ भारतीयों वाले फेसबुक संसार में इस पूरी टीम और उसके जनलोकपाली मजमें के समर्थकों कि वास्तविक संख्या लगभग 6 लाख है, यानी केवल 2 प्रतिशत के आसपास ही है.
अब एक नज़र इस टीम अन्ना को ट्विटर पर प्राप्त समर्थन की.
मई 2011 तक के उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार ट्विटर संसार के भारतवासी सदस्यों की संख्या लगभग 1 करोड़ 30 लाख के करीब थी.
ट्विटर कि इस दुनिया में किरण बेदी के नाम से बने 2 एकाउंट्स में से एक में किरण के समर्थकों कि संख्या है 303257 और दुसरे में 8326 यानि कुल समर्थकों कि संख्या है 311583. अर्थात लगभग 2.39%  समर्थन.
इसी ट्विट्टर की दुनिया में केजरीवाल के नाम से बने नौ एकाउंट्स में उसके कुल समर्थकों कि संख्या है 43998. अर्थात लगभग 00.33% समर्थन.
ट्विटर पर ही इस अन्ना टीम  ने जनलोकपाल के नाम से ही एकाउंट बना रखा है. ट्विटर पर इस जनलोकपाल के समर्थकों की संख्या है लगभग 181453. अर्थात 1.39%  समर्थन.
इसके अलावा जनलोकपाल  के नाम से 10-5 एकाउंट और हैं जिनमें समर्थकों की संख्या 25-50 और 100 तक है. अर्थात नगण्य.
ट्विटर पर प्रशांत भूषण नाम से बने 5-6 एकाउंटस में से किसी के समर्थकों की संख्या 2 है तो किसी की 5 और किसी की सिर्फ शून्य…!!! ये वही प्रशांत भूषन है जो देश के दो टुकड़े कर देने की सलाह पूरे देश को देता घूमता है.
कमोवेश यही स्थिति मनीष सिसोदिया नाम से बने 3 एकाउंट्स की है.
ट्विटर पर ही कुछ अन्ना समर्थकों द्वारा अन्ना हजारे के नाम से बनाये गए लगभग 100 एकाउंट्स में दर्ज समर्थकों की संख्या लगभग 42000 के करीब है. अर्थात लगभग 0.32% समर्थन.
अन्ना गैंग के समर्थन की सबसे उर्वर भूमि समझी जाने वाली इंटरनेट की दुनिया के फेसबुक एवं ट्विटर संसार में  ये है असलियत अन्ना टीम के स्वघोषित जननायकों तथा उनके जनलोकपाली मजमे को प्राप्त 121 करोड़ देशवासियों के तथाकथित समर्थन की.
अतः गाँव गरीब खेत किसान मजदूरों के लगभग 85% वास्तविक भारत में इस टीम को प्राप्त समर्थन का वास्तविक आंकडा क्या कितना और कैसा होगा, इसका आंकलन कठिन नहीं है.
इस टीम के अंध भक्तों को आइना दिख जाए  इसके लिए जिक्र ज़रूरी है की इसी ट्विटर की भारतीय दुनिया में अमिताभ बच्चन के सिर्फ एक एकाउंट के समर्थकों की संख्या ही 15 लाख 87 हज़ार 307 है, तो प्रियंका चोपड़ा के केवल एक एकाउंट के समर्थकों की संख्या 16 लाख 69 हज़ार 704 है. साझा समर्थकों की इसमें कोई सम्भावना तो नहीं ही है तथा फेसबुक और ट्विटर के समर्थकों को तो एक दारू की बोतल और कुछ रुपयों में कोई नहीं खरीद सकता...!!! अतः अन्ना गैंग और खुद अन्ना समर्थन के मामले में यहाँ भी कंगाल क्यों हैं.