ले मशालें चल पड़े हैं लोग मेरे गाँव के
अब अँधेरा जीत लेंगे लोग मेरे गाँव के
कह रही है झोपडी औ' पूछते हैं खेत भी
कब तलक लुटते रहेंगे लोग मेरे गाँव के
बिन लड़े कुछ भी नहीं मिलता यहाँ ये जानकर
अब लड़ाई लड़ रहे हैं लोग मेरे गाँव के
हमारी आवाज़ का गला घोंटने के सरकारी दमनचक्र के खिलाफ
आज से इस प्राचीर पर वो मशाल दमकेगी जो प्रतीक है अंधकार के विरूध संघर्ष का. और अब ये तब तक दमकेगी, जब तक देश में भूख-गरीबी-भ्रष्टाचार-आतंक- देशघाती तुष्टिकरण से व्याप्त
हताशा निराशा और शोक के "स्याह" सन्नाटे के सौदागरों का 2014 के चुनावी श्मशान में राजनीतिक अंतिम संस्कार सम्पन्न नहीं हो जायेगा.
अब अँधेरा जीत लेंगे लोग मेरे गाँव के
कह रही है झोपडी औ' पूछते हैं खेत भी
कब तलक लुटते रहेंगे लोग मेरे गाँव के
बिन लड़े कुछ भी नहीं मिलता यहाँ ये जानकर
अब लड़ाई लड़ रहे हैं लोग मेरे गाँव के
हमारी आवाज़ का गला घोंटने के सरकारी दमनचक्र के खिलाफ
आज से इस प्राचीर पर वो मशाल दमकेगी जो प्रतीक है अंधकार के विरूध संघर्ष का. और अब ये तब तक दमकेगी, जब तक देश में भूख-गरीबी-भ्रष्टाचार-आतंक-
हताशा निराशा और शोक के "स्याह" सन्नाटे के सौदागरों का 2014 के चुनावी श्मशान में राजनीतिक अंतिम संस्कार सम्पन्न नहीं हो जायेगा.
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