Tuesday 28 August 2012

ले मशालें चल पड़े हैं लोग मेरे गाँव के...!!!

ले मशालें चल पड़े हैं लोग मेरे गाँव के
अब अँधेरा जीत लेंगे लोग मेरे गाँव के

कह रही है झोपडी औ' पूछते हैं खेत भी
कब तलक लुटते रहेंगे लोग मेरे गाँव के

बिन लड़े कुछ भी नहीं मिलता यहाँ ये जानकर
अब लड़ाई लड़ रहे हैं लोग मेरे गाँव के

हमारी आवाज़ का गला घोंटने के सरकारी दमनचक्र के खिलाफ
आज से इस प्राचीर पर वो मशाल दमकेगी जो प्रतीक है अंधकार के विरूध संघर्ष का. और अब ये तब तक दमकेगी, जब तक देश में भूख-गरीबी-भ्रष्टाचार-आतंक-देशघाती तुष्टिकरण से व्याप्त
हताशा निराशा और शोक के "स्याह" सन्नाटे के सौदागरों का 2014 के चुनावी श्मशान में राजनीतिक अंतिम संस्कार सम्पन्न नहीं हो जायेगा.

Monday 27 August 2012

बिना पद-अधिकार के लाखों करोड़ डकारने वाले NGO कुर्सी पाकर क्या करेंगे


अन्ना गैंग के आठवां फेल ट्रक ड्राइवर सरगना किशन बाबूराव ने भी आज कहा कि, चुनावों में भाजपा और कांग्रेस को हराओ. हम देश को एक नया राजनीतिक विकल्प देंगे.
उसका गुर्गा केजरीवाल और उसके चमचे तो पहले से ही ये कह रहे है.
एक बात का विशेष ध्यान रखिये कि ये पूरा गैंग, छोटे से कार्यकर्ता से लेकर किशन बाबूराव और केजरीवाल तक केवल और केवल NGO के गोरखधंधे से ही माल कमाते हैं. विदेशों से इनको मिलने वाली तथाकथित चंदे की मोटी रकमों के किस्से जमकर जगजाहिर हो चुके हैं. जनलोकपाल बिल के दायरे में NGO's शामिल नहीं हो इसके लिए इन्होने कैसा नंगनाच किया था ये भी पूरे देश ने देखा था.
अतः ये कैसा राजनीतिक विकल्प देंगें ज़रा इसकी एक झलक देख लीजिये.
NGO's को विदेशों से मिलने वाली चंदे की रकम का हिसाब-किताब रखने वाले गृहमंत्रालय के FCRA विंग के अनुसार मार्च 2010 को समाप्त वित्तीय वर्ष तक NGO's को 94 हज़ार करोड़ रुपये का विदेशी चंदा मिला. (देखें ये लिंक http://www.rediff.com/business/slide-show/slide-show-1-column-ndian-ngos-received-rs-94k-cr-in-17-yrs/20120229.htm )
इसमें भी 2007-08, 2008-09, 2009-10 के बीच इन्हें लगभग 31 हज़ार करोड़ का विदेशी चंदा मिला (देखें ये लिंक http://articles.timesofindia.indiatimes.com/2012-03-15/india/31196382_1_foreign-funds-foreign-contribution-ngos) अर्थात औसतन 10 हज़ार करोड़ प्रतिवर्ष का केवल विदेशी चंदा. यदि इसी औसत से मार्च 2012 तक के 2 और साल जोड़ लीजिये तो अबतक लगभग एक लाख पन्द्रह हज़ार करोड़ का सिर्फ विदेशी चंदा NGO's को मिला है. केंद्र और देश की राज्य सरकारों से मिलने वाले ऐसे अनुदानों की रकम इससे कई गुना ज्यादा है. तब ऐसे चंदे की रकम संभवतः दसियों लाख करोड़ हो जायेगी.

क्या ये गैंग इस देश को कोई हिसाब दे सकता है कि, इस लाखों करोड़ चंदे की रकम से देश की जनता के हित के लिए कौन सा काम.? कब.? और कहाँ.? हुआ...
इसके बजाय जब NGO's की जांच लोकपाल के दायरे में रखने की बात हुई थी तो इस गैंग ने उसके विरोध में जमकर नंगनाच किया था.
अतः इस देश में जिस NGO गिरोह ने बिना किसी सरकारी पद और अधिकार के जनता की भलाई के नाम पर लाखों करोड़ की रकम डकार ली हो उस उस NGO गिरोह के ही लोगों को जब सत्ता और अधिकार मिल जायेंगे तब क्या हाल होगा.?
-> कृपया इस सवाल को अधिक से अधिक लोगों से शेयर करिए.

Sunday 26 August 2012

"बाप, पूत, नाती, यही तीन बराती " ...!!!

दिल्ली में रविवार 26 अगस्त को गज़ब मिलीभगत की धूर्त सियासी नौटंकी हुई.
anna गैंग के 3-4 जगहों पर हुए प्रदर्शनों में कुल मिलाकर 100-150 लोग ही इकट्ठा हुए,(हालंकि चुनिन्दा चैनलों के खबरिया कौव्वों ने बहुत बढ़ाने-चढाने की कोशिश की लेकिन टीवी के परदे की फोटो प्रदर्शनकारियों की शर्मनाक संख्या के सच की चुगली चीख चीख कर करती दिखीं. लेकिन कमाल देखिये कि, इन प्रदर्शनकारी कांग्रेसी दलालों का माहौल बनाने के लिए दिल्ली पुलिस ने आंसूं गैस के गोले दागने, वाटर कैनन चलने और लाठीचार्ज करने के पूर्व नियोजित ड्रामे को बहुत मेहनत से अंजाम दिया. और चुनिन्दा चैनलों के खबरिया कौव्वों ने दिल्ली पुलिस के इस ड्रामे के प्रचार में ऐसी हाहाकारी कांव-कांव शुरू की कि, मानों दिल्ली में प्रलय आ गयी हो.
जबकि सच ये है कि, इस केजरीवाल और उसके गुर्गों को प्रदर्शन के लिए आदमी ढूंढें नहीं मिले. परिणामस्वरूप इसे और इसके कुल 6 गुर्गों को पुलिस ने शुरू में ही प्रदर्शन के दौरान गिरफ्तार करने के घंटे भर बाद पुनः छोड़ दिया ताकि ये ड्रामे को कुछ देर और जारी रख सके. इसने वही किया भी.
इसकी बेशर्मी देखिये कि, इतनी शर्मनाक स्थिति वाले अपने फूहड़ प्रदर्शन बावजूद ये पूरी निर्लज्जता के साथ खबरिया कौव्वों के कैमरों और माइकों पर दावा कर रहा था कि, ये आन्दोलन नहीं क्रांति है. और उन खबरिया कौव्वों की बेहयाई देखिये कि, वो इस केजरीवाल के हास्यास्पद और सरासर झूठे बयान को ब्रेकिंग न्यूज बना के दिखाने-सुनाने में जुटे थे, जबकि सच ये है कि, इसकी इस "प्रदर्शन बरात" में आम आदमी तो था ही नहीं, इसके और इसके दर्जन भर गुर्गों के NGO के कुल 100-150 नौकर चाकर इस "प्रदर्शन बरात" में सरकारी दामाद की तरह शामिल थे, और उस पुरानी कहावत को चरितार्थ कर रहे थे कि "बाप, पूत, नाती, यही तीन बराती " ...!!!

Saturday 25 August 2012

इन बाप-बेटों का घर क्यों नहीं घेरते केजरीवाल..?

पिछले डेढ़ सालों से किसी उजड्ड गंवार चरवाहे की तरह हाथ में जनलोकपाली लट्ठ ले के केजरीवाल ने ईमानदारी को अपने घर की भैंस की तरह मनमाने तरीके से हांकने की ही जिद्द की है.
रविवार को जिस कोयला घोटाले की आड़ में गडकरी का घर घेरने की धमकी केजरीवाल ने दी है, वह धमकी केजरीवाल की तथाकथित ईमानदारी के दोगले-दोहरे चरित्र-चेहरे का शर्मनाक उदाहरण है.
सीएजी द्वारा कोयला घोटाले में 142 कोयला खदानों को मनमाने तरीके से आबंटित करने की जिस सरकारी प्रक्रिया पर उंगली उठा के देश को लगभग 1.86 लाख करोड़ का चूना लगने की सनसनीखेज सच्चाई से परिचित कराया है.
कुछ वर्ष पूर्व ठीक उसी प्रक्रिया से उत्तरप्रदेश की मायावती सरकार ने कुछ ख़ास लोगों और कम्पनियों को नोयडा में सैकड़ों करोड़ के फ़ार्महाउस कौड़ियों के मोल आबंटित कर दिए थे.
जिस नोयडा में सरकार का न्यूनतम सर्किल रेट जब 18000 रुपये प्रति वर्ग मीटर था (बाज़ार दर तो इससे कई गुना अधिक थी) तब माया सरकार ने 10,000 वर्ग मीटर प्लॉट वाले 150 फार्महाउस 3.5 करोड़ रुपये में आबंटित कर दिए थे, इसमें भी सुविधा ये दी थी की प्लॉट पाने वाले को प्रारम्भ में केवल 35 लाख रुपये देने थे शेष राशि 16 मासिक किस्तों में चुकानी थी.
जबकि गौर करिए कि न्यूनतम सरकारी सर्किल रेट से ही इन प्लॉटों का मूल्य 18 करोड़ रुपये बनता था, बाज़ार दर से तो इन प्लॉटों की कीमत इससे बहुत अधिक थी. लेकिन माया सरकार ने कृषि कार्य के नाम पर इस कारनामे को अंजाम दिया था.
इन 150 प्लॉटों में से 120 तो निजी कम्पनियों को दिए गए थे और 29 प्लॉट निजी व्यक्तियों को. कमाल देखिये कि इन परम भाग्यशाली 29 व्यक्तियों में शान्ति भूषण और उनके सुपुत्र जयंत भूषण भी शामिल थे.
इस भयंकर फार्महाउस जमीन घोटाले का मामला अब इलाहबाद हाईकोर्ट में है. कुछ सप्ताह पूर्व प्रदेश सरकार को सौंपी गयी अपनी जांच रिपोर्ट में नोयडा अथारिटी के चेयरमैन राकेश बहादुर ने इस फार्महाउस घोटाले से सरकार को 1000 करोड़ की चपत लगने की बात कही है. कुछ दिनों पूर्व ही उत्तरप्रदेश सरकार ने इस पूरे घोटाले की जांच लोकायुक्त को भी सौंप दी है.
अतः कोयला घोटाले के नाम पर नेताओं का घर घेरने को आतुर हो रहे केजरीवाल को इन भूषणों का घर क्यों नहीं दिख रहा...?
ध्यान रहे कि, गरीब किसानों की जमीन को जबरिया अधिग्रहित करने के बाद इस फार्महाउस घोटाले की लूट से सरकारी खजाने को जो 1000 करोड़ रुपये की चपत लगायी गयी थी वो रुपये किसी केजरीवाल या किन्हीं भूषणों की बपौती नहीं थे.
इसके बजाय ये 1000 करोड़ रुपये गरीब किसानों के खून पसीने से सींची गयी जमीन के थे.
अतः क्या फर्क है कोयला घोटाले तथा फार्महाउस घोटाले के दोषियों में..?
फर्क केवल रकम और अवसर का है, नीयत और नीति का नहीं क्योंकि जिसको जितना अवसर मिला उसने उतना हाथ साफ़ किया.

Friday 24 August 2012

कोटि कोटि नमन....

शिवराम हरी राजगुरू (अगस्त 24, 1908 – मार्च 23, 1931): 
देश की आज़ादी के लिए शहीद होने वाले स्वतंत्रता सेनानी राजगुरु की आज जयंती है. 
कोटि कोटि नमन....  
भगत सिंह,सुखदेव और राजगुरु को
....नमन उस माँ को जिसने जन्म दिया इन वीरो को..

फेसबुक ट्विटर से परेशां है भ्रष्टाचारियों की चहेती "मोना डार्लिंग

ना इज्जत की चिंता, ना फिकर कोई अपमान की, 
जय बोलो बेईमान की
जय बोलो...!!!

Thursday 23 August 2012

" क्यों चुप हैं तथाकथित सेकुलर और मिडिया " डर गए क्या ????

11 अगस्त (शनिवार) को मुम्बई के आजाद मैदान पर मुस्लिमों द्वारा हिंसा का जो दृश्य खड़ा किया गया वह सोचने पर मजबूर करता है कि राजनीतिक सत्ता पाने के लिए देश विभाजन के रूप में जो महंगा मूल्य चुकाया गया, अब 65 वर्ष बाद क्या खंडित भारत पुन:विभाजन के कगार पर पहुंच गया है? 13 अगस्त के अंग्रेजी दैनिक 'हिन्दू' में प्रकाशित मुम्बई पुलिस की आंतरिक जांच रपट के अनुसार असम के बोडो क्षेत्र और म्यांमार में अराकान प्रांत के रोहिंगिया या मुसलमानों के प्रति सहानुभूति और समर्थन के लिए शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने के नाम पर आयोजित सभा में पुलिस और टेलीविजन चैनलों पर हमले की पूरी तैयारी पहले से की गयी थी। पुलिस रपट में बताया गया है कि मंच पर 17 वक्ता थे। उनमें से केवल पांच के भाषण पूरे हो पाये थे। पांचवें वक्ता मौलाना गुलाम अब्दुल कादरी का भड़काऊ भाषण चल ही रहा था कि झंडे, बैनर ही लेकर 1000 मुस्लिम युवकों की भीड़ छत्रपति शिवाजी टर्मिनल रेलवे स्टेशन से बाहर निकली और शांति व्यवस्था के लिए तैनात पुलिस दल व सभा को 'कवर' करने के लिए टीवी चैनलों की 'ओबी बैन' पर टूट पड़ी। वाहनों में आग लगा दी गयी। पुलिस वालों को गाड़ियों में बंद करके जिंदा जलाने की कोशिश की गयी। महिला पुलिसकर्मियों का उत्पीड़न किया गया। उनके हाथों से रायफलें, रिवाल्वर व कई राउंड जिंदा कारतूस छीन लिये गये। 15 से 25 वर्ष आयु वर्ग की यह हिंसक भीड़ पेट्रोल के टिन, ज्वलनशील पदार्थों से भरी प्लास्टिक बोतलों, हाकी, लोहे की छड़ों और डंडों से लैस होकर सभा स्थल पर आयी थी। भद्दी-भद्दी गालियां और उत्तेजक नारे लगाते हुए वह पुलिस और मीडियाकर्मियों पर टूट पड़ी। आधे घंटे तक यह हिंसक नृत्य चलता रहा। इस दौरान 2 निरपराध लोग घटनास्थल पर मारे गये। 54 घायल हुए, जिनमें से 45 पुलिसकर्मी हैं। उनमें से आठ की हालत गंभीर बतायी गयी है।

खतरनाक अनदेखी

इस एकतरफा हमले की दहशत से भयभीत मीडिया इस घटना के संदेश की बेबाक समीक्षा करने से घबरा रहा है, और मुस्लिम वोट बैंक के भूखे पाखण्डी सेकुलरवादी राजनेता चुप्पी साध गये हैं। आज, (16 अगस्त) के मेल टुडे में प्रकाशित चित्रों के अनुसार मुम्बई के पुलिस आयुक्त अरूप पटनायक अपराधियों को पकड़वाने में मुस्तैदी दिखाने की बजाय अपने मातहतों को फटकार रहे हैं कि उन्होंने अमुक दंगाई को क्यों पकड़ा, किसके कहने पर पकड़ा? यहां तक कि उन्होंने बिना जांच- पड़ताल किये उस गिरफ्तार आरोपी को छुड़वा भी दिया। पता नहीं क्यों महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार में शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी आर.आर.पाटिल को ही गृहमंत्री बनाये रखना चाही है? पाटिल का रिकार्ड 26/11 के आतंकी हमले के समय भी बहुत खराब था, उनके कई गैर जिम्मेदाराना बयानों की कटु आलोचना हुई थी। तब सब आशा कर रहे थे कि पाटिल में अगर थोड़ी-सी भी शर्म बाकी होगी तो वे स्वयं ही गृहमंत्री के पद से त्यागपत्र दे देंगे। कम से कम (स्व.) विलास राव देशमुख के नैतिक जिम्मेदारी के आधार पर मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देने के पश्चात तो पाटिल को अपने पद पर बने रहने का कोई अधिकार नहीं रह गया था। पर वे बने रहे, बहुत दबाव और आलोचना के बाद ही मजबूरन पद छोड़ा। इस बार फिर गृहमंत्री बनाये गये और अपने त्यागपत्र की सब ओर से उठ रही मांग पर कान बहरे करके मीडिया की आंखों से ओझल हो गये हैं। यह भी कम महत्व की बात नहीं है कि उस सभा के आयोजकों में रजा अकादमी और 25 साल के युवक मौलाना अहमद रजा की कुछ ही दिनों पहले बनी 'मदीनातुल इल्म फाउंडेशन', जिसका अभी पंजीकरण भी नहीं हुआ है, जैसी अज्ञात संस्थाएं थीं। मौलाना रजा कुछ ही समय पहले इंग्लैण्ड से मजहबी प्रचार का एक साल का प्रशिक्षण लेकर वापस भारत लौटा है। उसका कहना है कि रिजवान खान नामक एक कबाड़ी ने उसे इस सभा की अनुमति लेने को कहा और वह अनुमति लेने को तैयार हो गया। आश्चर्य यह है कि उसे फटाफट अनुमति मिल भी गयी। किन्तु इससे भी अधिक महत्व की बात यह है कि उस सभा में मंच पर शमशेर खान पठान नामक महाराष्ट्र के एक पूर्व पुलिस अधिकारी भी मौजूद था और कुछ समय पूर्व ही गठित उसकी 'अवाम विकास पार्टी' भी सभा के आयोजकों में से एक थी। इन आयोजकों के साथ-साथ 'नरेन्द्र मोदी विरोध' के एक सूत्री कार्यक्रम के लिए कुख्यात तीस्ता सीतलवाड़ की भूमिका भी कम दिलचस्प नहीं है। उसने पुलिस आयुक्त अरूप पटनायक को ऐसी 'डिजिटल फोटो' पेश की है, जिसके आधार पर वे सिद्ध करना चाहती है कि तिब्बत और थाईलैण्ड जैसे देशों के लोगों के उत्पीड़न के जाली फोटुओं को असम और म्यांमार के मुसलमानों पर उत्पीड़न के चित्र बताकर मुस्लिम युवकों को भड़काया और गुमराह किया गया। यानी वे उनकी सुनियोजित हिंसा पर पर्दा डालने की कोशिश कर रही हैं और यह सत्य छिपा रही हैं कि म्यांमार के रोहिंगिया मुसलमानों के प्रश्न को ओ.आई.जी., मुस्लिम काउंसिल आफ बर्मा, भारतीय मुसलमानों के उत्तरी अमरीका मंच जैसे अनेक अन्तरराष्ट्रीय मुस्लिम संगठनों ने एक वैश्विक अभियान के तौर पर उठाया है। जमाते-ए-इस्लामी ए हिंद के अंग्रेजी साप्ताहिक मुखपत्र 'रेडियांस' के दो अंक (15 और 12 अगस्त, 2012) म्यांमार के रोहिंगिया मुसलमानों का वहां के बौद्ध समाज और सरकार के द्वारा उत्पीड़न के इतिहास से भरे हुए हैं। इन्हीं अंतरराष्ट्रीय मुस्लिम संस्थाओं के आह्वान पर दिल्ली में म्यांमार दूतावास के सामने एक प्रदर्शन आयोजित किया गया था, जिसमें जमात-ए-इस्लामी और उसके 'वेलफेयर पार्टी' नामक राजनीतिक दल के बैनर तले तथाकथित सेकुलर पार्टियों, यथा-मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी, रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी, भाकपा और जद(यू) भी सम्मिलित हुए थे। मुस्लिम वोट बैंक को रिझाने के लालच में ही भारत सरकार ने म्यांमार सरकार के पास अपना दूत भेजने का निर्णय किया है। क्या सरकार और तथाकथित सेकुलर पार्टियों के ऐसे आचरण से मुस्लिम आक्रामकता को प्रोत्साहन नहीं मिलता है?

बढ़ती मुस्लिम आक्रामकता

यह मुस्लिम आक्रामकता बढ़ ही नहीं रही है बल्कि हिंसक रूप धारण कर रही है। उ.प्र. के बरेली और आंवला जैसे शहरों में प्रत्येक हिन्दू पर्व के अवसर पर मुस्लिम हिंसा का भड़कना इसका उदाहरण है। बरेली तो पिछले एक महीने से कर्फ्यू झेल रहा है। पिछले वर्ष जब मायावती मुख्यमंत्री थीं तब यहां होली के पर्व पर खून की होली खेली गयी थी। इस वर्ष समाजवादी पार्टी के सत्ता में आने के बाद पहले कांवड़ियों को लेकर फिर जन्माष्टमी के जुलूस को लेकर बरेली में हिंसा भड़कायी गयी है। यह आक्रामकता कितना आगे बढ़ गयी है इसका उदाहरण दिल्ली में जामा मस्जिद मेट्रो स्टेशन के लिए खुदाई के दौरान किसी पुराने भवन के अवशेषों के प्रगट होने पर उसे अकबराबादी मस्जिद घोषित किए जाने के रूप में सामने आया। पता नहीं यह कैसे जाना गया कि वे अवशेष सत्रहवीं शताब्दी की किसी अकबराबादी मस्जिद के ही हैं? यह खबर फैलते ही एक मुस्लिम राजनेता मैदान में कूद पड़ा। स्थानीय मुस्लिम विधायक शोएब इकबाल ने नेतृत्व की कमान संभाल ली। उसने दिल्ली और आसपास के हजारों मुसलमानों की भीड़ उस मस्जिद में नमाज पढ़ने के लिए जुटा ली। कुछ मौलवियों ने भीड़ को मस्जिद का पुनर्निर्माण करने के लिए जुटा दिया और रातों-रात उस जगह मस्जिद का एक ढांचा खड़ा कर दिया गया। एक ओर मजहबी उन्माद, दूसरी ओर असहाय प्रशासन व न्यायपालिका। दिल्ली उच्च न्यायालय ने उस ढांचे को अवैध घोषित किया, उसे गिराने का आदेश दिया, पर उसे गिराये कौन? दिल्ली सरकार ने कहा कि यह जिम्मेदारी नगर निगम की है। नगर निगम ने कहा कि यह जिम्मेदारी पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की है। पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने कहा कि यह कार्य दिल्ली पुलिस को करना चाहिए। दिल्ली पुलिस ने कहा कि स्थानीय विधायक शोएब इकबाल को इसमें सहयोग करना चाहिए, पर मुस्लिम उन्माद की लहर पर सवार शोएब इकबाल ने कहा कि यह ढांचा गिराया ही नहीं जाना चाहिए। इसी उधेड़बुन में एक महीना निकल गया, अवैध ढांचा ज्यों का त्यों पड़ा है। मेट्रो कंपनी का निर्माण कार्य रुका पड़ा है, जिसके कारण लालकिला, जामा मस्जिद, सुनहरी मस्जिद, दिल्ली गेट, कश्मीरी गेट, गुरुद्वारा रकाब गंज और जंतर मंतर जैसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थलों को जोड़ने वाली भूमिगत मेट्रो लाइन को बिछाने का काम अधर में लटका हुआ है। यदि पुराने खंडहरों के पुनर्निर्माण की नीति को अपनाया जाता है तो पूरी दिल्ली में ही ऐसे खंडहर बिखरे हुए हैं, तो फिर दिल्ली में कोई भी नया निर्माण संभव नहीं होगा और यदि बारहवीं से अठारहवीं शताब्दी तक की मध्ययुगीन विध्वंस लीला के इन खंडहरों के पहले के इन्द्रप्रस्थ के इतिहास को खोजने की कोशिश की गयी तो शायद हमें पाताल तक खंडहर ही मिलते जाएंगे। क्या पांडवों से चौहानों और तोमरों तक के इतिहास को प्रगट होने का अधिकार नहीं है?

इतिहास से सबक सीखें

पर इस समय भारत में इतिहास के तथ्यों और तकर्ों से अधिक महत्व मजहबी जुनून और उसके पीछे खड़ी डंडे की ताकत का हो गया है। यह मजहबी जुनून वोट बैंक राजनीति का मुख्य हथियार बन गया है। वास्तव में असम की घटनाओं से पूरे देश का ध्यान बंगलादेशी घुसपैठ पर केन्द्रित होना चाहिए था। म्यांमार की रोहिंगिया मुस्लिम समस्या और असम की घुसपैठ समस्या एक ही प्रक्रिया के दो चेहरे हैं। म्यांमार अपनी अस्मिता को बचाने के लिए जूझ रहा है तो पूर्वोत्तर भारत अपनी। भारत के मुस्लिम समाज से अपेक्षा है कि वह भारत की राष्ट्रीय अस्मिता की रक्षा के लिए बंगलादेशी घुसपैठ को रोकने के राष्ट्रीय प्रयत्नों में सहयोग दे। पर हो रहा है उलटा। मुस्लिम कट्टरवादियों ने महाराष्ट्र और कर्नाटक में पूर्वोत्तर भारत के छात्रों के विरुद्ध हिंसा का वातावरण पैदा कर दिया है, एक ओर भारत में बंगलादेशी घुसपैठ बड़े पैमाने पर जारी है तो दूसरी ओर पाकिस्तान से बचे-खुचे हिन्दू भी भागकर भारत में शरण लेने को मजबूर किये जा रहे हैं। उनकी दर्द भरी कहानी सुनकर भी भारत सरकार और वोट बैंक के भूखे राजनेताओं की अन्तरात्मा उन्हें नहीं कचोटती, यह कैसी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है? क्या विभाजन को जन्म देने वाले घटनाचक्र को हम पूरी तरह भूल गये हैं? इस घटनाचक्र से हमने कोई सबक नहीं सीखा है? जो राष्ट्र अपने इतिहास को याद नहीं रखता, उससे कोई सीख नहीं लेता, वह धरती पर अपने अस्तित्व को खोकर स्वयं इतिहास बन जाता है। क्या भारत की यही नियति है?

   भारत के मुस्लिम समाज से अपेक्षा है कि वह भारत की राष्ट्रीय अस्मिता की रक्षा के लिए बंगलादेशी घुसपैठ को रोकने के राष्ट्रीय प्रयत्नों में सहयोग दे। पर हो रहा है उलटा। मुस्लिम कट्टरवादियों ने महाराष्ट्र और कर्नाटक में पूर्वोत्तर भारत के छात्रों के विरुद्ध हिंसा का वातावरण पैदा कर दिया है, एक ओर भारत में बंगलादेशी घुसपैठ बड़े पैमाने पर जारी है तो दूसरी ओर पाकिस्तान से बचे-खुचे हिन्दू भी भागकर भारत में शरण लेने को मजबूर किये जा रहे हैं। — साभार मित्र से !!" 5th pillar corrouption killer " the link is :- www.pitamberduttsharma.blogspot.com.
NOTE: THIS IS NOT MY POST
COURTSEY: http://www.blogger.com/blogger.g?blogID=8282675995022555167#editor/target=post;postID=8950875379434864532

पानी में दिखाकर गुजरातियों को "चाँद" देगी कांग्रेस...!!!

चन्द्रमा को लेने, उससे खेलने की जिद्द पर अड़े कन्हैया को माता यशोदा पानी से भरी थाली में चन्द्रमा की छाया दिखाकर संतुष्ट कर देती थीं..
भगवान् श्रीकृष्ण की बाल्यावस्था का यह अत्यंत चर्चित एवं लोकप्रिय प्रसंग है.
लगता है इस बार के गुजरात चुनाव में कांग्रेस ने गुजरात के मतदाताओं को माता यशोदा की शैली मैं ही बहलाने-फुसलाने की तैय्यारी की है.
गुजरात चुनाव सिर पर आ गए हैं.
रोजाना उजागर हो रहीं केंद्र की कांग्रेसी सरकार की भ्रष्टाचारी करतूतों की भारी-भरकम गठरी से बुरी तरह झुकी जा रही लचर-लाचार कमर वाली गुजरात कांग्रेस की अपनी खुद की उपलब्धियों का कटोरा भी बिलकुल खाली है.
अतः कांग्रेस ने अब गुजरात के चुनावी समर में नरेंद्र मोदी का सामना उलूल-जुलूल झूठे "वायदों-हथकंडों" से करने की ठानी है.उसने सत्ता में आने के बाद गुजरात के गरीबों को मुफ्त में 100 वर्ग गज का प्लाट और उसपर घर बनाने के लिए 50% सब्सिडी वाला बैंक क़र्ज़ देने का वायदा-दावा किया है. कांग्रेस ने एक ही दिन में अपने इस वायदे-दावे वाले 30 लाख फार्म भी बांट देने का दावा किया है.
अब सवाल ये है कि उसके ये दावे-वायदे कितने सच्चे और दमदार हैं...?
इसके लिए ज्यादा माथापच्ची करने की जरूरत ही नहीं है. दो उदाहरण देता हूँ.
पहला उदाहरण उस दिल्ली प्रदेश का जहां पिछले 14 सालों से कांग्रेस की सरकार है. तथा कांग्रेसी "राजमाता' और "राजकुमार" का स्थायी "डेरा" भी उसी दिल्ली में है. इसके बावजूद दिल्ली में पॉलीथीन और टाट की बनी अवैध और अस्थायी झुग्गियों में रहने वालों की संख्या लगभग 40 लाख है, तथ्य की पुष्टि के लिए देखें ये लिंक (http://www.asha-india.org/delhi-slums/why-do-slums-exist)
अतः कांग्रेस को गुजरात की जनता को यह जरूर बताना चाहिए कि उसने दिल्ली में अबतक कितने लोगों को 100 वर्ग गज का मुफ्त प्लॉट और घर बनाने के लिए 50 % सब्सिडी वाला क़र्ज़ दिया है...?
दूसरा उदाहरण उस मुंबई का जहां पिछले 12 वर्षों से कांग्रेस की सरकार है. तथा अवैध और अस्थायी झुग्गियों में रहने बेघर लोगों कि सबसे अधिक संख्या देश में मुंबई में ही है.
पिछले वर्ष के एक अध्ययन के अनुसार मुंबई में लगभग 90 लाख लोग स्लम्स में रह रहे थे. तथ्य की पुष्टि के लिए देखें ये लिंक(http://articles.timesofindia.indiatimes.com/2010-11-15/mumbai/28263181_1_slum-population-rajiv-awas-yojana-urban-poverty-alleviation-ministry)
अतः कांग्रेस को गुजरात की जनता को यह जरूर बताना चाहिए कि उसने मुंबई में अबतक कितने लोगों को 100 वर्ग गज का मुफ्त प्लॉट और घर बनाने के लिए 50% सब्सिडी वाला क़र्ज़ दिया है...?
इस सवाल के जवाब में कांग्रेस के खाते में सिर्फ एक बहुत बड़ा "जीरो" दर्ज़ है.
और यह "जीरो" ही इस बात की गवाही दे रहा है कि, कांग्रेस द्वारा गुजरात की जनता से किया जा रहा मुफ्त में 100 वर्ग गज का प्लाट और उसपर घर बनाने के लिए 50% सब्सिडी वाला बैंक क़र्ज़ देने का वायदा-दावा, माता यशोदा द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण को बाल्यावस्था में पानी भरी थाली में चाँद दिखाकर बहलाने की कथा का राजनीतिक मंचन मात्र है.

Tuesday 21 August 2012

देशघाती दोगले-दोहरे सरकारी चरित्र और चेहरे का प्रतीक है "जिंदाल

क्या गज़ब की राजनीतिक प्रशासनिक "देशघाती" धूर्तता का प्रदर्शन कितनी निर्भीक नग्नता-निर्लज्जता के साथ देश में हो रहा है और चैनली घोंसलों में सरकारी टुकड़े तोड़ने वाले खबरिया कौव्वे बिलकुल शांत हैं.
याद दिलाना चाहूँगा कि जब भी देश में कोई मुस्लिम आतंकवादी पकड़ा जाता है तो सरकारें और उनके "पालतू" खबरिया कौव्वे तत्काल यह चीख पुकार जोरशोर से शुरू कर देते हैं कि आतंकी का कोई धर्म नहीं होता,
किसी आतंकी का किसी भी धर्म से कोई लेनादेना नहीं होता, लेकिन ऐसे बयानों के भयंकर देशघाती दोगले-दोहरे चरित्र और चेहरे का परिचय देती है नरपिशाच सरीखे कुख्यात आतंकी अबू जिंदाल की रमजान के महीने में मुंबई में होती रही वीवीआईपी खातिरदारी.
उस दौरान जिंदाल हर रोज सुबह पांच बजे सहरी के लिए भेजा फ्राई, कीमा, चिकन रोल और मलाई की मांग करता था।
उसकी धार्मिक भावनाओं को आहत होने से बचाने के लिए जिंदाल की सुरक्षा में तैनात पुलिस अधिकारी उसकी हर फरमाइश को पूरा करने के लिए मजबूर थे।
मुंबई एटीएस के एक अधिकारी ने बताया था कि 'लश्कर आतंकी जिंदाल हर सुबह खजूर, दूध, मलाई, कीमा और भेजा फ्राई मांगता है। इनका इंतजाम करना काफी मुश्किल हो जाता है, लेकिन हम किसी की धार्मिक भावनाओं को चोट नहीं पहुंचाना चाहते, फिर चाहे वह आतंकी ही क्यों न हो। हर रोज पांच बजे से पहले एक कॉन्स्टेबल इन सामानों का इंतजाम करने के लिए बाहर भेजा जाता है।
अतः सरकार से देश यह जानना चाहता है कि जब किसी आतंकी का कोई धर्म नहीं होता तो फिर इस देश के इतिहास के सबसे बर्बर आतंकी नरसंहार को अंजाम दिलवाने वाले राक्षस की धार्मिक भावनाओं पर सरकार इतनी मेहरबान क्यों हुई...???
http://navbharattimes.indiatimes.com/-abu-jundal-demands-bheja-fry-at-5-am-and-gets-it/articleshow/15541384.cms

Sunday 19 August 2012

यह खेल बहुत खतरनाक है...

शनिवार 18 अगस्त को देर शाम कुछ न्यूज चैनलों पर चल रही ब्रेकिंग न्यूज में बताया जा रहा था कि पूर्वोत्तर भारतीयों को धमकी वाला एसएम्एस पाकिस्तान से भेजा गया था.
अतः इससे यह स्पष्ट हो गया कि एक सोची समझी रणनीति के तहत 4-5 दिनों तक देश को सह्माने की साज़िश रचने वाला शायद अब कभी पकड़ में नहीं आएगा. यह खेल बहुत खतरनाक है और खूब सोच समझ कर भारी भरकम तैय्यारियों के साथ  शुरू किया गया है. इस खेल की शुरुआत करने वालों को इसमें जोरदार प्रारम्भिक जीत भी मिली है.
अपने षड्यंत्र, अपनी साज़िश में वे पूरी तरह सफल हुए हैं. पिछले तीन चार दिनों में जेट गति से घटे राजनीतिक सामाजिक घटनाक्रमों के तार जोड़कर उनपर नज़र दौड़ाइए तो स्थिति स्पष्ट होने लगती है.
पिछले वर्ष एक प्रमुख साप्ताहिक समाचार पत्र चौथी दुनिया ने विस्तृत तर्कों-तथ्यों के साथ बीस लाख  करोड़ से भी अधिक के कोयला घोटाले का सनसनीखेज रहस्योदघाटन किया था. देश में हडकम्प मच गया था. परिणामस्वरूप सक्रिय हुई सीएजी ने भी अपनी जांच की प्रारम्भिक रिपोर्ट में दस लाख करोड़ से अधिक के घोटाले की पुष्टि की थी. बीते मई माह में सीएजी ने कोयला घोटाले से सम्बन्धित अपनी फाइनल रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी लेकिन सरकार ने उस समय चल रहे सत्र में संसद से झूठ बोलकर उस फाइनल रिपोर्ट को संसद के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया था. लेकिन ये बात छुप नहीं पायी थी. परिणामस्वरुप केंद्र सरकार यह जान गयी थी कि इन दिनों चल रहे मानसून सत्र में उसे वो रिपोर्ट संसद में प्रस्तुत करनी ही होगी.
क्योंकि कोयले की आड़ में लाखों करोड़ की जो लूट पिछले आठ सालों के दौरान हुई उसमे 5 साल से अधिक समय तक कोयला मंत्रालय का कार्यभार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पास ही था. अतः इस रिपोर्ट पर पूरे देश में जोरदार ऐतिहासिक हंगामा मचना, सरकार और उसके "सरदार" की थू थू होना निश्चित था. अतः रणनीति बनी कि इस रिपोर्ट पर से देश का ध्यान कैसे हटाया जाया..? इस रिपोर्ट की देशव्यापी चर्चा को कैसे रोका जाए.? और इस रणनीति पर अमल की शुरुआत हुई रिपोर्ट सदन में रखने से ठीक एक हफ्ते पहले.
मुंबई में एक गुमनाम साम्प्रदायिक संगठन ने "असम दंगों" को लेकर हिंसा का नंगा नाच किया.
देश का ध्यान उस तरफ केन्द्रित हुआ. निकट भविष्य में देश में ऐसी और घटनाओं कि पुनरावृत्ति की आशंका से सहमा देश अभी संभल भी नहीं सका था कि गुमनाम फोन कालों से मिली रहस्यमय संदिग्ध धमकियों से सिहरे पूर्वोत्तर भारतीयों द्वारा मुंबई,पुणे,बैंगलोर, हैदराबाद से हजारों की संख्या में बदहवास पलायन के समाचारों से समूचे देश में सनसनी फ़ैल गयी. इस देशव्यापी सनसनी में पेट्रोल डालने का काम किया कुछ चुनिन्दा न्यूज चैनलों ने. संभवतः इस पूरी रणनीति में उनकी भी भूमिका पूर्व निर्धारित थी. इस देशव्यापी सनसनी की सिहरन जब चरम पर पहुंची तो उसी दौरान 17 अगस्त को वो रिपोर्ट संसद में प्रस्तुत की गयी,
संयोग देखिये की जिस समय ये रिपोर्ट सदन में प्रस्तुत की जा रही थी. उसी समय देश के सबसे बड़े प्रदेश उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ समेत कानपुर, इलाहाबाद जैसे तीन बड़े महानगरों में गुमनाम संगठनों के गुंडों ने "असम हिंसा" के विरोध की आड़ में सड़कों पर बेख़ौफ़ होकर साम्प्रदायिक हिंसा का नंगा नाच प्रारम्भ कर दिया था. आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि तीनों शहरों में घंटों तक होते रहे तालिबानी तांडव में मीडियाकर्मी और पुलिसकर्मी सड़कों पर सरेआम बुरी तरह पीटे गए सैकड़ों लोग घायल हुए, लूटे गए लेकिन तीनों शहरों में ना तो किसी को गिरफ्तार किया गया न किसी कि खिलाफ रिपोर्ट लिखी गयी. बाद में जबर्दस्त चौतरफा आलोचनाओं के दबाव में इस पूरे घटनाक्रम के खिलाफ लगभग 30 घंटे बाद जो रिपोर्ट लिखी गयी वह 15000 अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ लिखी गयी. जबकि प्रतिबन्ध की धज्जियां उड़ाते हुए इन दंगाइयों का जुलूस निकलने वाली संस्था और उसके संचालक मौलाना से राजधानी लखनऊ की पुलिस बखूबी परिचित थी.
आश्चर्यजनक रूप से लखनऊ कानपूर इलाहाबाद में दंगाइयों के प्रति उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा दिखाई गयी इस जबर्दस्त दरियादिली का कोई भी गलत सही स्पष्टीकरण खुद सरकार भी नहीं दे सकी है. लेकिन सौभाग्य से इसके बावजूद साम्प्रदायिक हिंसा और तनाव भड़काने के प्रयास सफल नहीं हो सके.
हाँ इतना अवश्य हुआ कि कोयला घोटाले की सीएजी रिपोर्ट पर इन दंगों की खबरें बहुत भारी पडीं.
कोयला घोटाले को जनता की अदालत से पहले ही सरकारी जांचों की फाइलों के कब्रिस्तान में दफ़न करने की रणनीति के प्रारम्भिक दौर में इस रणनीति के निर्माताओं को फिलहाल भारी सफलता मिली है.
कुछ चुनिन्दा न्यूज चैनलों ने भी रणनीति के अनुरूप ही अपनी भूमिका का जबर्दस्त निर्वाह किया, परिणामस्वरूप इन दिनों केंद्र सरकार जिस सोशल मीडिया से बुरी तरह भयभीत दिख रही है उस सोशल मीडिया पर भी असम के दंगों, पूर्वोत्तर भारतीयों के पलायन तथा मुंबई एवं उत्तरप्रदेश की साम्प्रदायिक हिंसा के समाचार ही छाए हुए हैं. कोयला घोटाले में हुई लूट और उसके जिम्मेदार लुटेरों की चर्चा उस सोशल मीडिया में भी बहुत कम है.
अब क्या यह केवल संयोग ही है कि, उत्तरप्रदेश में  समाजवादी पार्टी की सरकार है और इनदिनों केंद्र में समाजवादी पार्टी केंद्र सरकार के सर्वाधिक विश्वसनीय राजनीतिक मित्रों के समूह की सर्वाधिक चर्चित सदस्य है. इसका फैसला देश की उस जनता के विवेक पर जिसकी गाढ़ी कमाई के लाखों करोड़ रुपये कोयला घोटाले और एयरपोर्ट घोटाले की आड़ में लूट लिए गए.?

Saturday 18 August 2012

समाजवादी मुख्यमंत्री की तथाकथित सेक्युलर सरकार का काला सच.

बहुत अदा के साथ पिता-पुत्र मुलायम-अखिलेश की जोडी ने प्रदेश की जनता से अपनी सरकार के कामकाज के मूल्यांकन करने के लिए 6 माह का समय माँगा था. यह उचित समयावधि थी.
अतः 6 माह तक शांत ही रहने का मन बना लिया था. लेकिन कल जो लखनऊ में हुआ उसने इस सरकार की नीयत की नकाब की धज्जियां उड़ा दी हैं.
कल शुक्रवार को लखनऊ में कट्टर धार्मिक लफंगों द्वारा किये गए तालिबानी तांडव के कहर को शहर की आबादी के एक बड़े हिस्से ने झेला, इसको झेलने वालों में बच्चे बूढ़े और महिलाएं, सब शामिल थे.
सब कुछ दिन
दहाड़े हुआ,
मीडिया के कैमरों तथा उत्तरप्रदेश सरकार की पुलिस के आला अफसरों की आँख के सामने के सामने हुआ,
यहाँ तक कि उत्तरप्रदेश सरकार की नाक (विधान सभा) से चंद क़दमों की दूरी पर ठीक उसके सामने हुआ लेकिन एक भी दंगाई लफंगा अभी तक गिरफ्तार नहीं किया गया.
जिस मौलाना ने प्रतिबन्ध के बावजूद इन हजारों हिंसक लफंगों का जुलूस निकालकर राजधानी लखनऊ की सर्वाधिक महत्वपूर्ण (वी.वी.आई.पी) सड़कों पर बेख़ौफ़ होकर घंटों तक राजधानी की शांति-व्यवस्था को रौंदा-कुचला उसके खिलाफ एक एफआईआर तक दर्ज़ नहीं की गयी है.
जब बुरी तरह घायल मीडियाकर्मी/प्रेस फोटोग्राफरों ने कुछ लोगों को पहचान कर नामज़द एफआईआर दर्ज़ करवाने का प्रयास किया तो पहले तो पुलिस ने उनकी रिपोर्ट लिखने से ही इनकार किया, भारी झडप के बाद जो रिपोर्ट लिखी गयी वो अज्ञात लोगों के खिलाफ लिखी गयी.
ये है इक्कीसवीं सदी के सपनों की बात करने वाले तथाकथित नौजवान समाजवादी मुख्यमंत्री की तथाकथित सेक्युलर सरकार का काला सच.

शांति की अपील का..."शैतानी" जवाब..!!!


   असम और म्यांमार की हिंसा में अल्पसंख्यकों पर हुए तथाकथित असर के विरोध में शुक्रवार को अलविदा की नमाज के बाद उत्तर प्रदेश में लखनऊ, कानपुर और इलाहाबाद में भीड़ हिंसक हो उठी। इस दौरान न बीमार की परवाह की गई और न बच्चों की। न महिलाओं को देखा गया और न अपाहिज को। जिधर मन हुआ बेतहाशा ईंट-पत्थर बरसाए गए और लूटपाट की गई। लखनऊ में बुद्ध पार्क घूमने गई महिलाओं को घेरकर उनके कपड़े तक फाड़ दिए गए। मुंबई में हुए हिंसक विरोध से कोई सबक न लेते हुए सुस्त पुलिस तंत्र तब सक्रिय हुआ, जब तमाम निर्दोष चुटैल हो चुके थे और संपत्ति का भारी नुकसान हो चुका था। विरोध की बयार जम्मू-कश्मीर में भी चली लेकिन वहां लोगों के हिंसक होने की खबर नहीं है।
लखनऊ में विधानसभा के सामने बवाल
लखनऊ में दोपहर बाद पक्का पुल से शुरू अराजकता विधान भवन के सामने तक पहुंच गई। यहां टीलेवाली मस्जिद व आसफी इमामबाड़े में अलविदा की नमाज के बाद कुछ लोगों ने विधान भवन की ओर कूच कर दिया और वहां तोड़फोड़ की। अधिकारी जब तक माजरा समझ पाते तब तक करीब एक हजार प्रदर्शनकारी गौतम बुद्ध पार्क पहुंच गए। कुछ ने पार्क की रेलिंग तोड़नी शुरू की तो कुछ ने स्वतंत्रता दिवस पर लगाई झालरों को नोच डाला।
इसके बाद सैकड़ों लोग पार्क में कूद गए और टिकट खिड़की पर तोड़फोड़ कर पार्क में मौजूद पुरुषों, महिलाओं और कर्मचारियों को पीटने लगे। कुछ महिला पर्यटकों के कपड़े भी फाड़ दिए गए। इस दौरान कई गाड़ियां तोड़ी गईं। पार्क में लगभग सब-कुछ तहस नहस कर डाला। पार्क में लगी गौतम बुद्ध की मूर्ति भी क्षतिग्रस्त करने की कोशिश की। आसपास की दुकानें तोड़ीं और सामान लूट लिया। इसके बाद उपद्रवी कन्वेंशन सेंटर मोड़ पर पहुंचे और बसों व गाड़ियों में तोड़फोड़ की। इन वाहनों में सवार लोगों से भी अभद्रता की गई।
पुलिस ने खदेड़ा तो पुल से होकर हाथी पार्क में कूद गए और वहां भी तोड़फोड़ की। वहां मौजूद पुलिसकर्मियों की पिटाई की गई। रेल पुल पर चढ़कर पुलिस पर पथराव किया। इस दौरान जो मीडियाकर्मी उन्हें नजर आया उसका न केवल कैमरा तोड़ा बल्कि उसकी पिटाई की गई-धारदार हथियार से कई घायल भी किए गए। लखनऊ में विभिन्न स्थानों पर तोड़फोड़ में करीब सौ वाहन क्षतिग्रस्त हुए हैं।

इलाहाबाद में दुकानें लूटीं
संगमनगरी इलाहाबाद में नमाज के बाद जुलूस निकाल रहे कुछ लोगों को जब पुलिस ने रोकने की कोशिश की तो वे उग्र हो गए। जुलूस में शामिल युवकों ने पथराव शुरू कर दिया। देखते ही देखते भीड़ बेकाबू हो गई। उपद्रवियों ने घंटाघर से लेकर जानसेनगंज तक दुकानों में तोड़फोड़ और लूटपाट की। यहां पर तोड़फोड़ का विरोध करने पर दो गुटों में पथराव हुआ, जिससे सड़क किनारे खड़े 200 से अधिक वाहन क्षतिग्रस्त हो गए।

कानपुर में पथराव से कई घायल
कानपुर में यतीमखाना स्थित नानपारा मस्जिद में कुछ युवकों ने काली पंट्टी बांधकर नमाज अदा की और नमाज के बाद असम की हिंसा को लेकर भड़काऊ भाषण देना शुरू कर दिया। इसके बाद सभी नारे लगाते नवीन मार्केट की ओर बढ़ने लगे। वहां पर भीड़ को समझाया जाता, तब तक यतीमखाना चौराहे से सैकड़ों युवकों की भीड़ साइकिल मार्केट में पथराव कर दिया। इससे वहां भगदड़ मच गई। कई लोगों के घायल होने और दुकानों में नुकसान की खबर है।
स्थिति संभालने के लिए डीआइजी अमिताभ यश वहां पहुंचे, तभी पता चला कि रजबी रोड पर कुछ युवक दुकानें बंद करा रहे हैं। डीआइजी फोर्स के साथ रजबी रोड पहुंचे तो युवकों ने उन पर पथराव कर दिया। डीआइजी ने खुद टीयर गैस गन उठाकर भीड़ को ललकारा तब भीड़ वापस भागी।

झूठ कौन बोल रहा है., वजाहत या केंद्र...?

कई दशकों तक भारतीय प्रशासनिक सेवा में उच्च पदों पर रहा वजाहत हबीबुल्लाह इन दिनों राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग का अध्यक्ष हैं.
इसने असम हिंसा से सम्बन्धित अपनी जो "शातिराना" रिपोर्ट प्रधानमंत्री को सौंपी हैं उसके अनुसार असम में जारी भयंकर हिंसा का बंगलादेशी घुसपैठियों की समस्या से कोई लेना-देना ही नहीं है और यह बोडो समुदाय के लोगों और स्थानीय मुसलिमों के बीच संघर्ष का परिणाम है।
वजाहत की इस रिपोर्ट ने एक तरह से उन करोड़ों बांग्लादेशियों को भारतीय कहलाने की क्लीन चिट दे दी है, इस रिपोर्ट से उसने उन दंगाई बंगलादेशी घुसपैठियों को भारतीय घोषित कर दिया है.
लेकिन अपनी इस चतुराई के कारण वजाहत ने केंद्र सरकार को पूरी तरह झूठा साबित कर दिया है, क्योंकि पिछले डेढ़ महीने से केंद्र सरकार देश को यही बता रही है कि असम में जारी दंगे साम्प्रदायिक दंगे नहीं है.
जबकि इस वजाहत की रिपोर्ट के अनुसार असम हिंसा बांग्लादेश से आए लोगों की देन नहीं है, बल्कि यह बोडो समुदाय के लोगों और स्थानीय मुसलिमों के बीच संघर्ष का परिणाम है। अतः केंद्र सरकार को देश के समक्ष यह स्पष्ट करना चाहिए कि साम्प्रदायिक हिंसा या दंगे की परिभाषा क्या होती है.? तथा झूठ कौन बोल रहा है., वजाहत या केंद्र...?
http://www.amarujala.com/National/assam-violence-due-to-feud-between-bodos-and-muslims-30848.html