राष्ट्रकवि दिनकर ने स्वतन्त्रता के मात्र सात
वर्ष पश्चात् ही इन पंक्तियों में देश की दशा और दिशा की व्यथा का सूक्ष्म
साक्षात्कार किया था, और प्रचंड निर्भीकता के साथ दिल्ली को दर्पण दिखाया
था।
इस पोस्ट में जहां पैंसठ लिखा गया है, स्वर्गीय दिनकर जी ने वहाँ सात लिखा था।
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