Saturday 18 August 2012

समाजवादी मुख्यमंत्री की तथाकथित सेक्युलर सरकार का काला सच.

बहुत अदा के साथ पिता-पुत्र मुलायम-अखिलेश की जोडी ने प्रदेश की जनता से अपनी सरकार के कामकाज के मूल्यांकन करने के लिए 6 माह का समय माँगा था. यह उचित समयावधि थी.
अतः 6 माह तक शांत ही रहने का मन बना लिया था. लेकिन कल जो लखनऊ में हुआ उसने इस सरकार की नीयत की नकाब की धज्जियां उड़ा दी हैं.
कल शुक्रवार को लखनऊ में कट्टर धार्मिक लफंगों द्वारा किये गए तालिबानी तांडव के कहर को शहर की आबादी के एक बड़े हिस्से ने झेला, इसको झेलने वालों में बच्चे बूढ़े और महिलाएं, सब शामिल थे.
सब कुछ दिन
दहाड़े हुआ,
मीडिया के कैमरों तथा उत्तरप्रदेश सरकार की पुलिस के आला अफसरों की आँख के सामने के सामने हुआ,
यहाँ तक कि उत्तरप्रदेश सरकार की नाक (विधान सभा) से चंद क़दमों की दूरी पर ठीक उसके सामने हुआ लेकिन एक भी दंगाई लफंगा अभी तक गिरफ्तार नहीं किया गया.
जिस मौलाना ने प्रतिबन्ध के बावजूद इन हजारों हिंसक लफंगों का जुलूस निकालकर राजधानी लखनऊ की सर्वाधिक महत्वपूर्ण (वी.वी.आई.पी) सड़कों पर बेख़ौफ़ होकर घंटों तक राजधानी की शांति-व्यवस्था को रौंदा-कुचला उसके खिलाफ एक एफआईआर तक दर्ज़ नहीं की गयी है.
जब बुरी तरह घायल मीडियाकर्मी/प्रेस फोटोग्राफरों ने कुछ लोगों को पहचान कर नामज़द एफआईआर दर्ज़ करवाने का प्रयास किया तो पहले तो पुलिस ने उनकी रिपोर्ट लिखने से ही इनकार किया, भारी झडप के बाद जो रिपोर्ट लिखी गयी वो अज्ञात लोगों के खिलाफ लिखी गयी.
ये है इक्कीसवीं सदी के सपनों की बात करने वाले तथाकथित नौजवान समाजवादी मुख्यमंत्री की तथाकथित सेक्युलर सरकार का काला सच.

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