Monday 2 January 2012

राजनीति की मण्डी बड़ी नशीली है, इस मण्डी में सबने मदिरा पी ली है. कमरबंद पुख्ता हैं सिर्फ दलालों के, आम आदमी की तो धोती ढीली है.....


त्तरप्रदेश के राजनीतिक रंगमंच पर शातिर और सधे हुए बाजीगरों-कलाकारों के अज़ब-गज़ब करतबों का कुटिल क्रम गति पकड़ने लगा है.

लोकतान्त्रिक मर्यादाओं, सिद्धांतों, आदर्शों, नीतियों-नियमों और परम्पराओं को अवसरवादिता के अग्निकुंड में लपलपा रही स्वार्थी राजनीति की तेज़ लपटों के हवाले अत्यंत निर्लज्जता के साथ किया जा रहा है.

उत्तरप्रदेश की राजनीति में पूर्ण रूप से रसातल में पहुँच कर पूरी तरह अप्रासंगिक और अछूत हो चुके लोकतान्त्रिक सिद्धांतों और राजनीतिक आदर्शों का शर्मनाक साक्ष्य बीती 30 दिसम्बर को देखने को मिला.

प्रदेश की राजनीति में स्वयं को दलबदलू राजनीति के द्रोणाचार्य के रूप में सफलतापूर्वक स्थापित कर चुके नरेश अग्रवाल ने 30 दिसम्बर को बसपा का दामन छोड़कर समाजवादी पार्टी की सदस्यता ग्रहण की.

उल्लेखनीय है कि, बसपा ने इस बार भी नरेश अग्रवाल के बेटे नितिन अग्रवाल को उम्मीदवार बनाने का एलान किया था, पर बीते शनिवार को निर्णय बदल दिया। नाराज नरेश ने इस पर सपा में अपना नया ठौर तलाश लिया.

इस अवसर पर नरेश अग्रवाल का स्वागत करते हुए सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने नरेश अग्रवाल के विषय में उनकी "प्रशंसा" करते हुए जो कुछ कहा वह प्रदेश की राजनीति के नैतिक-चारित्रिक पतन की पराकाष्ठा का निर्लज्ज उदाहरण हैं.

मुलायम सिंह यादव ने कहा कि, "नरेश के साथ आने का संदेश पूरे उप्र में चला गया है। अब वह सपा के लिए प्रचार में जुटेंगे। नरेश किसी भी पार्टी में रहे हों पर उनका सपा से सम्पर्क बराबर बना रहा है। वह कभी किसी के खिलाफ नहीं बल्कि अपने को आगे बढ़ाने का काम करते रहे है। सपा प्रमुख ने कहा बसपा सरकार में लूट की हिस्सेदारी को लेकर झगड़ा मचा हुआ है। जिन्होंने हिस्सा कम दिया है वहीं निकाले जा रहे हैं"

मुलायम का यह बयान खुद नरेश के लिए ही यह सन्देश भी देता दिखा की उन्होंने मायावती को "लूट" का कम हिस्सा ही दिया इसीलिए निकाले गए. अर्थात नरेश अग्रवाल ने तो जमकर "लूट" की लेकिन उन्होंने मायावती को हिस्सा कम दिया.

इसके बावजूद अपने इसी बयान में ही मुलायम का यह कहना कि, "नरेश के साथ आने का संदेश पूरे उप्र में चला गया है, अब वह सपा के लिए प्रचार में जुटेंगे" स्पष्ट कर गया की उत्तरप्रदेश में "जनता के लिए, जनता के द्वारा, जनता की सरकार" के लोकतांत्रिक सिद्धांत की धज्जियां उड़ाकर "लुटेरों के लिए लुटेरों के द्वारा लुटेरों की सरकार" बनाने की कोशिशें प्रारंभ हो चुकी हैं. इस बहती गंगा में हर प्रमुख और छुटभैय्या राजनीतिक दल अपने हाँथ धोने के बजाय बाकायदा डुबकियाँ लगाने की हर कोशिश कर रहा है.

अपनी पार्टी की केंद्र सरकार में हुए लाखों करोड़ के घपलों-घोटालों की भारी-भरकम गठरी सर पर लादकर इन दिनों उत्तरप्रदेश में घूम रहे कांग्रेसी युवराज राहुल गाँधी प्रदेश में अपनी उसी पार्टी की ईमानदार सरकार बनाने का "ठेका" लेते घूम रहे हैं.
5 सालों तक जिन मंत्रियों के सहारे चली अपनी सरकार के कारनामों को बसपा सुप्रीमो मायावती "सर्वजन हिताय" बता रहीं थीं, चुनाव आते ही अपनी उसी सरकार के 19 मंत्रियों को मायावती ने घोर भ्रष्टाचारी कह के पद से ही नहीं हटाया बल्कि पार्टी से ही बाहर कर दिया, जनता की आँखों में फेंकी गई इस धूल का प्रभाव क्या, कैसा और कितना होगा.? यह समय बतायेगा.
उत्तरप्रदेश में 24 माफिया सरगनाओं से सजे रहे कुख्यात मंत्रिमंडल वाली अपनी सरकार का कलंकित इतिहास और झारखंड में शीबू सोरेन सरीखे भारत के सर्वकालीन सर्वाधिक भ्रष्ट...!!!!! नेता के साथ आज भी जारी सरकार में साझेदारी की पूँजी लेकर भाजपा उत्तरप्रदेश की जनता के समक्ष "सुशासन" देने का दावा पूरे दमखम के साथ ठोंक रही है.
यह राजनीतिक परिस्थितियां उत्तरप्रदेश में प्रख्यात कवि रामेन्द्र त्रिपाठी की अत्यंत चर्चित एवं लोकप्रिय पंक्तियों की याद दिला रही हैं कि,

राजनीति की मण्डी बड़ी नशीली है, इस मण्डी में सबने मदिरा पी ली है.
कमरबंद पुख्ता हैं सिर्फ दलालों के, आम आदमी की तो धोती ढीली है......
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