Thursday 12 January 2012

ऐसे युगपुरुष को कोटि-कोटि नमन...!!!

वेदांत के विश्वविख्यात विलक्षण प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु स्वामी विवेकानंद जी की आज जयंती है. विवेकानन्दजी का जन्म १२ जनवरी सन्‌ १८६३ को हुआ.
उनका घर का नाम नरेन्द्र था. उनके पिताश्री विश्वनाथ दत्त पाश्चात्य सभ्यता में विश्वास रखते थे. वे अपने पुत्र नरेन्द्र को भी अँग्रेजी पढ़ाकर पाश्चात्य सभ्यता के ढ़ंग पर ही चलाना चाहते थे. नरेन्द्र की बुद्धि बचपन से बड़ी तीव्र थी और परमात्मा को पाने की लालसा भी प्रबल थी. परिणाम स्वरुप स्वामी विवेकानन्द ने अपना जीवन अपने गुरुदेव स्वामी रामकृष्ण परमहंस को समर्पित कर दिया.
25 वर्ष की अवस्था में उन्होंने गेरुआ वस्त्र धारण कर लिये. तत्पश्चात् उन्होंने पैदल ही पूरे भारतवर्ष की यात्रा की. सन्‌ 1893 में शिकागो (अमेरिका) में विश्व धर्म परिषद् हो रही थी. स्वामी विवेकानन्दजी उसमें भारत के प्रतिनिधि के रूप में पहुँचे. योरोप-अमेरिका के लोग उस समय पराधीन भारतवासियों को बहुत हीन दृष्टि से देखते थे. वहाँ लोगों ने बहुत प्रयत्न किया कि स्वामी विवेकानन्द को सर्वधर्म परिषद् में बोलने का समय ही न मिले. एक अमेरिकन प्रोफेसर के प्रयास से उन्हें थोड़ा समय मिला किन्तु उनके विचार सुनकर सभी विद्वान चकित हो गये. इस सर्वधर्म सम्मेलन के भाषणों के बाद, "द न्यूयार्क हेराल्ड" ने लिखा कि, "धर्म सम्मेलन में सबसे महान व्यक्ति विवेकानन्द हैं। उनका भाषण सुनने के बाद यह प्रश्न अनायास खड़ा होता है कि ऐसे ज्ञानी देश को सुधारने के लिए धर्म प्रचारक भेजना कितनी बेवकूफी की बात है." फिर तो अमेरिका में उनका अत्यधिक स्वागत हुआ. वहाँ इनके भक्तों का एक बड़ा समुदाय हो गया. तीन वर्ष तक वे अमेरिका में रहे और वहाँ के लोगों को भारतीय तत्वज्ञान की अद्भुत ज्योति प्रदान करते रहे. उनकी वक्तृत्व-शैली तथा ज्ञान को देखते हुए वहाँ के मीडिया ने उन्हें साइक्लॉनिक हिन्दू का नाम दिया.
"आध्यात्म-विद्या और भारतीय दर्शन के बिना विश्व अनाथ हो जाएगा" यह स्वामी विवेकानन्दजी का दृढ़ विश्वास था. अमेरिका में उन्होंने रामकृष्ण मिशन की अनेक शाखाएँ स्थापित कीं। अनेक अमेरिकन विद्वानों ने उनका शिष्यत्व ग्रहण किया.
स्वामी जी ने अपने भारतीय समाज की त्रुटियों की ओर भी संकेत करते हुए कहा था कि, "हिन्दू समाज के दो व्यक्ति एक साथ मिलकर नहीं बैठ सकते और न ही अधिक दिनों तक एकत्र रह सकते हैं. जब मुसलमान या अंग्रेज जैसी कोई तीसरी शक्ति आकर हम पर राज करने लगती है, तब हम सज्जन बन जाते हैं. हमें इस बुराई को दूर करना होगा. हमें अपनी संगठित शक्ति का निर्माण कर राष्ट्र को सामर्थ्य संपन्न बनाना होगा. साहस का सूर्य उदित हो चुका है, भारत का उत्थान अवश्य होगा. किसी में यह शक्ति-सामर्थ्य नहीं है कि वह अब भारत को रोक सके. भारत अब फिर से निद्रा में नहीं डूबेगा. यह भीमाकार देश फिर से अपने पांवों पर खड़ा हो रहा है."
स्वामी विवेकानंद के इस ओजस्वी चरित्र का महत्व समझाते हुए कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने कहा था कि , "यदि कोई भारत को समझना चाहता है तो उसे विवेकानन्द को पढ़ना चाहिए"
योगी अरविन्द ने कहा था, "पश्चिमी जगत में विवेकानन्द को जो सफलता मिली, वह इस बात का प्रमाण है कि भारत विश्व-विजय करके रहेगा."
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने लिखा है, "स्वामी विवेकानन्द का धर्म राष्ट्रीयता को उत्तेजना देने वाला धर्म था. नई पीढ़ी के लोगों में उन्होंने भारत के प्रति भक्ति जगायी, उसके अतीत के प्रति गौरव एवं उसके भविष्य के प्रति आस्था उत्पन्न की. उनके विचारों से लोगों में आत्मनिर्भरता और स्वाभिमान का भाव जगा है"
अपने सत्कर्मो के चलते दिव्यता प्राप्त कर युग पुरुष एवं सामाजिक समरसता के अग्रदूत स्वामी विवेकानन्द युवाओं के प्रेरणास्रोत है। राष्ट्र हित का व्रत लेकर उन्होंने पुरी दुनिया में भारतीय संस्कृति के धर्मध्वज को सम्मान एवं कीर्ति के सर्वोच्च शिखर पर पहुँचाया. उठो जागो व लक्ष्य से पहले न रूकने का उनका ध्येय वाक्य आज भी राष्ट्रोत्थान की प्रेरणा दे रहा है.
ऐसे युगपुरुष को कोटि-कोटि नमन, शत-शत प्रणाम...!!!